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भूतनाथ - खण्ड 4

देवकीनन्दन खत्री

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :300
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8363
आईएसबीएन :978-1-61301-021-1

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भूतनाथ - खण्ड 4 पुस्तक का ई-संस्करण

छठवाँ बयान


आधी रात का समय है। निकलते हुए चन्द्रदेव ने अपनी मद्धिम रोशनी जंगलों और मैदानों पर फैलाना शुरू कर दिया है जिसमें का अन्धकार जो अभी तक हाथ को नहीं देखने देता था अब दूर होकर सिकुड़ता हुआ कोने-अंतरे घुसकर अपने को छिपाने की कोशिश कर रहा है। चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है।

ऐसे समय में हम दो आदमियों को जंगल ही जंगल आते हुए देखते हैं, रात का समय और सन्नाटा होने पर भी ये दोनों न-जाने क्यों चन्द्रमा की रोशनी का भी सहारा लेना उचित नहीं समझते और घने पेड़ों के बीच में से होते हुए जा रहे हैं। अंधेरे के कारण हम इनकी सूरत-शक्ल और पोशाक के बारे में कुछ भी नहीं कह सकते, हाँ इतना अवश्य देख रहे हैं कि आगे जाने वाले आदमी की पीठ पर एक बड़ा-सा गट्ठर लदा हुआ है और संभव है कि उसमें कोई आदमी बँधा हुआ हो, यद्यपि ये दोनों बड़ी सावधानी से जा रहे हैं पर फिर भी पैरों के नीचे आ पड़ने वाले सूखे पत्तों की चरमराहट कुछ न कुछ आवाज पैदा कर ही देती है।

धीरे-धीरे जंगल खतम हो गया और अब खुला मैदान आ गया जहाँ कोई पेड़ इस लायक नहीं था कि अपनी आड़ में इन दोनों को जाने की इजाजत दे। यह देख आगे जाने वाला आदमी रुक गया और पीठ पर का गट्ठर जमीन पर उतार कुछ सुस्ताने लगा। वह पीछे वाला आदमी भी पास आ पहुँचा और खड़ा हो इधर-उधर देखने लगा।

यकायक कहीं पास ही से आती हुई गाने की मीठी आवाज ने दोनों का ध्यान अपनी तरफ खैंचा और दोनों कान लगाकर सुनने लगे। थोड़ी ही देर बाद सितार की आवाज भी आने लगी और मालूम हो गया कि सितार के स्वर से अपनी मीठी आवाज मिलाकर कोई नाजुक औरत कहीं पास ही गा रही है।

चाँदनी रात, सन्नाटे का आलम, कहीं किसी तरह की आवाज नहीं, ऐसे समय में उस मीठे गाने ने इन दोनों को बेचैन कर दिया और ये इस गौर में पड़ गये कि आवाज किधर से आ रही है और यह गाने वाली कौन है।

थोड़ी ही देर में मालूम हो गया कि आवाज बाईं तरफ से आ रही है जिधर कुछ ही दूर पर एक सुन्दर सुहावना नाला भी बह रहा था। गट्ठर वाले आदमी ने अपने साथी से कहा, ‘‘इसी जगह ठहरो तो मैं भी देखूँ कि कौन गा रहा है।’’

बाईं तरफ कुछ ही बढ़ने पर आवाज तेज होने लगी और विश्वास हो गया कि वह इधर ही कहीं से आ रही है। इस आदमी ने तेजी से कदम बढ़ाया और थोड़ी देर में उस नाले के किनारे जा पहुँचा जो इस जंगल के बीच में से होकर बहता था। इस नाले के किनारे ही एक पत्थर की चट्टान पर, जो जल से सटी हुई थी, एक कमसिन और नाजुक औरत बैठी हाथ में सितार लिए कुछ गुनगुना रही थी।

वह आदमी उसी जगह खड़ा हो उस औरत की तरफ देखने लगा जिस पर चन्द्रमा अपनी पूरी रोशनी डाल रहा था। चाँदनी रात, जल का किनारा, सन्नाटे का आलम, ऐसे समय में उस सुन्दरी के गले से निकलते हुए गीत ने उस आदमी को एकदम मोहित कर लिया और सब तरफ की सुध भुला वह एकटक उसी की तरफ देखने लगा।

विहाग की एक राग सितार पर बजा उस कमसिन ने अपना मुँह खोला ही था कि यकायक नाले के दूसरे किनारे पर कुछ देख वह काँप उठी। उसके हाथ से सितार छूटकर नाले में जा गिरा और उसने एक हल्की चीख मार अपनी आँखें आँचल में छिपा लीं। ऐसा मालूम होने लगा मानो वह डर से बेहोश हो जायगी। इस आदमी ने यह हालत देख चौंककर इसका सबब जानने के लिए सामने की तरफ देखा और तब तुरन्त ही इसकी निगाह एक कद्दावर शेर के ऊपर पड़ी जो नाले के दूसरी तरफ वाली झाड़ी के अन्दर खड़ा उसी औरत की तरफ देख रहा था।

शेर का आधा बदन झाड़ी के अन्दर था सिर्फ आगे का धड़ बाहर की तरफ निकला हुआ था और उसकी चमकदार डरावनी आँखें एकटक उस नाजुक बदन पर पड़ रही थीं। थोड़ी देर बाद उसने आँचल हटाकर पुनः उसकी तरफ देखा और उसी समय शेर ने अपना मुँह फाड़ा तथा जम्हाई ली। यकायक भयानक सूरत और बड़े-बड़े दाँत देखते ही उस औरत ने पुनः चीख मारी और चट्टान पर गिर गई, इस आदमी को विश्वास हो गया कि वह बेहोश हो गई।

भला इस तरह एक औरत को भयानक शेर के मुँह में पड़ा कौन मर्द देख सकता था! इस आदमी ने तुरन्त अपना खंजर निकाल हाथ में लिया और आड़ से सामने आ गया, पहिले वह उस औरत के पास गया पर उसे पूरी तरह पर बेहोश पाया, सामने की तरफ निगाह करने से शेर उसी जगह नजर आया।

उस आदमी ने घबराहट के साथ चारों तरफ देखा। इस जगह से थोड़ी दूर आगे नाले के इस पार से उस पार न आ जाय और उस बेहोश औरत को कुछ चोट न पहुँचावे, अस्तु अब क्या करना मुनासिब होगा यह सोचता हुआ वह पशोपेश में पड़ा कुछ देर तक उसी जगह खड़ा रह गया।

आखिर उसने यही मुनासिब समझा कि उस औरत को उठा ले और कहीं हिफाजत की जगह पहुँचा दे। उसने अपने दोनों हाथों पर उसे उठा लिया और पेड़ों के एक झुरमुट में घुस गया। इसी समय उसे एक हल्की सीटी की आवाज सुनाई पड़ी और वह समझ गया कि उसके देर करने से घबड़ा कर उसका साथी उसे ढूँढ़ रहा है।

औरत को जमीन पर लिटा वह बाहर निकल आया और अपने साथी को वहाँ खड़ा देख बोला, ‘‘कहो क्या है?’’ साथी ने कहा, ‘‘आपने बहुत देर लगा दी।’’ उसने जवाब दिया, ‘‘एक औरत यहाँ बैठी मीठे स्वर में गा रही थी। एक शेर को देख वह बेहोश हो गई और मैंने उसे आड़ में रख आना मुनासिब समझा।’’ साथी ने डरकर पूछा—‘‘शेर, कहाँ है?’’ उस आदमी ने नाले के पार की तरफ बताया पर वह शेर कहीं नजर न आया, मालूम होता है कई आदमियों की आहट पा वह किसी दूसरी तरफ निकल गया था।

यही सोच उसने कहा, ‘‘नहीं है, कहीं चला गया। खैर कोई हर्ज नहीं, तुम इन्दुमति के पास ही रहो, मैं भी उस औरत को लिए वहीं आता हूँ।’’ उसका साथी यह सुन ‘‘बहुत अच्छा’’ कह पीछे लौट गया और वह आदमी उस झाड़ी की तरफ बढ़ा जिसके अन्दर उस बेहोश औरत को छोड़ गया था। ताज्जुब की बात थी कि बहुत खोजने पर भी वह बेहोश औरत कहीं दिखाई न पड़ी। चारों तरफ घूम-घूमकर अच्छी तरह देखने पर भी कहीं उसका पता न लगा और यह भी बिल्कुल न मालूम हुआ कि वह किधर गई या क्या हो गई।

वह आदमी लाचार हो उस तरफ बढ़ा जिधर उसका साथी गया था पर उसी समय उसके साथी ने वहीं पहुँचकर घबड़ाहट भरे स्वर में कहा, ‘‘इन्दुमति का तो कहीं पता नहीं लगता, मालूम होता है कि किसी दुश्मन को खबर लग गई और वह उसकी गठरी को उठा ले गया!’’

बेचैनी और घबराहट में डूबा वह आदमी यह बातसुन और भी परेशान हो गया और उसी समय उनके तरद्दुद का कोई ठिकाना ही न रहा जब पास ही से किसी को उसने यह कहते सुना, ‘‘खबरदार! होशियार हो जाओ और समझ लो कि भूतनाथ को तुम्हारा पता लग गया और वह तुम लोगों को कदापि जीता न छोड़ेगा!!''

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