मूल्य रहित पुस्तकें >> भूतनाथ - खण्ड 4 भूतनाथ - खण्ड 4देवकीनन्दन खत्री
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भूतनाथ - खण्ड 4 पुस्तक का ई-संस्करण
छठवाँ बयान
गौहर और गिल्लन आपुस में धीरे-धीरे बातें करती हुई चली जा रही थीं। इस समय गौहर बहुत ही प्रसन्न थी क्योंकि उसे अपना काम सिद्ध होने की पूरी उम्मीद थी। वह हँस-हँसकर गिल्लन से बातें करती थी और अपनी चंचल निगाहों से चारों तरफ देखती भी जाती थी।
जब ये दोनों अजायबघर के पास पहुँची तो यकायक इन्हें रुक जाना पड़ा क्योंकि गौहर की निगाह साँवलसिंह पर पड़ी जो बड़ी तेजी से इनके पीछे-पीछे आ रहा था, गौहर को अपनी तरफ देखता पा उसने रुकने का इशारा किया जिस पर गौहर ने घोड़ा रोक दिया और साँवलसिंह के पास आने पर पूछा, ‘‘क्यों क्या है जो तुम इस तरह घबराए हुए चले आ रहे हो?’’
साँवलसिंह ने कहा, ‘‘माफ कीजियेगा क्योंकि मैं आपके बताये हुए ठिकाने पर आज मिल न सका। मैं एक जरूरी भेद का पता लगाने के लिए जमानिया गया हुआ था जहाँ से अभी चला आ रहा हूँ!’’
गौहर : (घबड़ाकर) यह तुम क्या कह रहे हो साँवलसिंह? क्या अभी-अभी उस कूएँ पर तुम्हारी मेरी मुलाकात नहीं हो चुकी है?
साँवल०: (चौंककर) कहाँ? कब? मैं तो आपसे पहली दफे मिल रहा हूँ।
गौहर : हाय हाय, यह तो बड़ा गजब हो गया। जरूर किसी कम्बख्त ने तुम्हारी सूरत बन मुझे पूरा धोखा दिया, अब क्या होगा?
साँवल० : मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि आप यह क्या कह रही हैं? क्या मेरी सूरत बन किसी ने आपसे मुलाकात की? साफ-साफ कहिये कि क्या मामला है!
गौहर : हाँ, जरूर यही बात हुई, किसी धूर्त ऐयार ने तुम्हारी सूरत बन मुझ से उसी कूएँ पर मुलाकात की और मैंने उसे कई भेद की बातें भी बता दीं- ओफ बड़ा बुरा धोखा हुआ!
इतना कहकर गौहर घोड़े से उतर पड़ी और एक जगह बैठकर उसने सब हाल सांवलसिंह से कह सुनाया, उसने चुपचाप सब कुछ सुना और अन्त में कहा, ‘‘यह बड़ी बुरी बात हुई, अब आपके लिए अपने भेद छिपा रखना कठिन हो गया, हो न हो, यह काम भूतनाथ का है।’’
गौहर : बेशक यही बात है, मगर अब किया क्या जाए?
सांवल० : आपने अब उसे कहाँ जाने को कहा है?
गौहर : मैंने उसे वह चीठी दे बलभद्रसिंह के पास जाने को रहा था।
सांवल० : मगर वह कभी वहाँ न जायगा, जहाँ तक मैं समझता हूँ वह बराबर आपका पीछा ही कर रहा होगा बल्कि यहाँ ही कहीं मौजूद हो तो ताज्जुब नहीं।
इसी समय सांवलसिंह की निगाह बाईं तरफ गई जिधर घनी और कई गुंजान झाड़ियाँ थीं। उसने एकाएक चौंककर कहा, ‘‘बेशक वहाँ कोई आदमी छिपा हुआ है, आप ठहरिए मैं अभी आता हूँ।’’ इतना कह वह दबे पाँव झाड़ी की तरफ बढ़ा और कुछ ही दूर जा आँखों की ओट हो गया। गौहर और गिल्लन ताज्जुब के साथ उसी तरफ देखतीं रहीं।
थोड़ी देर बाद गौहर को ऐसा जान पड़ा मानों कोई दूर से गिल्लन को आवाज दे रहा है। उसने चौंककर गिल्लन से कहा, ‘‘मालूम होता है, सांवलसिंह ने उस ऐयार को पकड़ लिया और अब तुम्हें मदद के लिए बुला रहा है, जरा जाकर देखो तो सही क्या बात है?’’
गिल्लन इसके जवाब में ‘मैं यही चाहती हूँ’ कह कर उसी तरफ चली गई और झाड़ियों की ओट में पहुँची मगर वहाँ कोई न था अस्तु वह इधर-उधर देखने और खोजने लगी।
गिल्लन देर तक चारों तरफ घूमती रही। इस बीच में उसने सांवलसिंह को कई बार आवाज भी दी मगर उसका कुछ पता न लगा। आखिर झल्लाकर मन ही मन कुछ भुनभुनाती हुई वहाँ से लौटी और उस तरफ चली जिधर गौहर को छोड़ गई थी। मगर वहाँ उसे भी न पाया, आश्चर्य में आ चारों तरफ देखने लगी मगर वहाँ गौहर होती तब तो मिलती!
गौहर तो क्या वहाँ से दोनों घोड़े भी गायब थे। लाचार सिर पीटकर जमीन पर बैठ गई और बोली, ‘‘बेशक बहुत बड़ी गलती हो गई, वह सांवलसिंह नहीं बल्कि कोई ऐयार था जिसने यह धोखा दिया और गौहर को तो ले ही गया।
गिल्लन का ख्याल बहुत ठीक था। यह ऐयार जो सांवलसिंह की सूरत बन इन दोनों से मिला, वास्तव में इन्दुमति का साथी वही अर्जुन था जिसने उस कूएँ के नीचे छिपकर गौहर, गिल्लन और सांवलसिंह की बातें बखूबी सुन ली थीं और मौका पा सांवलसिंह की सूरत बन गौहर को गिरफ्तार कर ले भागा।
गिल्लन के जाते ही वह घूमकर चक्कर काटता हुआ गौहर के पीछे जा पहुँचा और एक कपड़े को, जो बेहोशी की दवा से तर था यकायक गौहर के मुँह पर डाल बेहोश कर उसको काबू में कर लिया, गौहर और गिल्लन के घोड़े मौजूद ही थे, उसने एक पर बेहोश गौहर को लादा दूसरे पर खुद सवार हुआ और जब तक गिल्लन लौटे उसके पहिले ही वहाँ से दूर निकल गया।
अर्जुन ने गौहर को गिरफ्तार तो कर लिया मगर अब वह इस फिक्र में था कि इसे रक्खे कहाँ ले जाकर। सच तो यह है कि जब से इन्दु उसके साथ से गायब हुई तब से वह बहुत ही उदास हो रहा था क्योंकि इन्दु को इन्द्रदेव ने खास तौर पर उसकी हिफाजत में छोड़ा था।
यद्यपि इस बीच में अर्जुन ने अपनी चालाकी से कई बातों का पता लगाया था और इन्दु को खोजने की कोशिश में भी बराबर लगा हुआ था पर इन्दु को पाए बिना वह कुछ करने की हिम्मत नहीं कर सकता था। आज यह बिलकुल इत्तिफाक ही की बात थी कि लोहगढ़ी से निकलती हुई कल्याणी के साथ-साथ चलती हुई इन्दु ने इस समय उसे देख लिया और साथ ही उसने भी उन दोनों को देखा अर्जुन को गुमान हुआ कि कदाचित ये दोनों मेरे और इन्दु के दुश्मनों में से हैं, इन्दु और कल्याणी को भी संदेह हुआ कि मुमकिन है कि वह सवार जो एक बेहोश औरत को लिए चला जा रहा है दारोगा का कोई दोस्त हो और वह बेहोश औरत हम लोगों के मेल की अथवा कोई साथी हो। कल्याणी ने व्यर्थ के सोच-विचार में समय नष्ट करना उचित न समझा।
उसने झटपट इन्दु से कुछ बातें कीं और तब तीर और कमान हाथ में ले जो उसके पास मौजूद था उसने अर्जुन के घोड़े को जख्मी करना चाहा यद्यपि अर्जुन की इच्छा हुई कि घोड़ा तेजकर निकल जाय मगर बेहोश गौहर के सबब से वह ऐसा कर न सकता था, दूसरे झाड़-झंखाड और घने पेड़ों के सबब से रास्ता भी इस लायक न था कि घोड़े तेजी से चलाए जा सकें अस्तु नतीजा यह निकला कि कल्याणी का चलाया हुआ तीर निशाने पर लगा और अर्जुन का घोड़ा तकलीफ के सबब से उछलने-कूदने लगा।
लाचार अर्जुन को उस घोड़े की लगाम छोड़ देनी पड़ी जिसे हाथ में लिए गौहर को सहारा दिए वह ले जा रहा था, उसी समय कल्याणी का दूसरा तीर पहुँचा जिसने घोड़े को बेकार ही कर दिया और अर्जुन को लाचार हो घोड़े से कूद तलवार हाथ में ले इन दोनों के आने को राह देखनी पड़ी जिन्होंने इस तरह बेमौके काम में खलल डाला था।
बात की बात में इन्दु और कल्याणी अर्जुन के पास आ पहुँची और कल्याणी ने डपटकर पूछा-‘‘तुम कौन हो और इस बेहोश औरत को कहाँ लिए जा रहे हो?’’ जवाब में अर्जुन ने भी लापरवाही के साथ कहा, ‘‘इस बात का जवाब हम तुम्हें क्यों दें? तुम बताओ कि कौन हो जो हमारे काम में इस तरह दखल दे रहे हो?’’
कल्याणी : (तलवार निकालकर) तुम्हें बताना ही होगा कि तुम कौन हो और यह बेहोश औरत कौन और कहाँ की रहने वाली है!
अर्जुन : (तलवार का जवाब तलवार ही से देने को तैयार होकर) कदापि नहीं, मैं तुम दोनों ही आदमियों से लड़ने को तैयार हूँ। अर्जुन की आवाज सुनने के साथ ही इन्दु को शक पैदा हुआ कि कहीं यह उसका साथी अर्जुन ही तो नहीं है! यद्यपि सूरत और पोशाक में जमीन-आसमान का फर्क था मगर आवाज में फर्क न था अस्तु इन्दुमति ने अपना संदेह दूर करने के लिए मानों लापरवाही के साथ कहा, ‘‘चम्पकलता!’’ इतना सुनने के साथ ही अर्जुन ने चौंककर इन्दु की तरफ देखा और तब धीरे से कहा, ‘‘नीलपदम!’’
इन्दु और अर्जुन ने घर से चलती समय यही इशारा एक-दूसरे को पहचानने के लिए मुकर्रर कर लिया था अस्तु इस समय इन्दु को पा अर्जुन को जितनी प्रसन्नता हुई उतनी ही अर्जुन को देख इन्दु को भी हुई। वह खुश होकर आगे बढ़ आई और अर्जुन से बोली, ‘‘वाह जी अर्जुन, तुम तो खूब मौके पर मिले!’’
अर्जुन : मगर आपको यहाँ देख मुझे बहुत ताज्जुब हो रहा है, मुझे यही विश्वास था कि आप दुश्मनों के फेर में पड़ गईं!
इन्दु० : बेशक मैं दुश्मनों के ही फंदे पड़ गई थी मगर (कल्याणी को बता कर) इनकी दया से कल ही छूटी हूँ, तुम अपना हाल बताओ और यह कहो कि यह बेहोश औरत तुम्हारे साथ कौन है जिसे इस तरह घोड़े पर लादे लिए जा रहे हो?
अर्जुन : इसे आप शायद नहीं जानती। यह पटने के शेरअली खाँ की लड़की गौहर है और मैंने अभी इसे गिरफ्तार किया है। इसके बारे में बहुत-सी विचित्र बातें बताऊँगा मगर पहिले आपका हाल सुन लेने और साथ ही (कल्याणी की तरफ बता के) आपका भी कुछ परिचय पा लेने बाद।
कल्याणी : (इन्दु से) मैं भी जानना चाहती हूँ कि ये कौन हैं?
इन्दु० : मैंने अपना हाल कहते हुए आपसे अपने साथी अर्जुनसिंह का हाल कहा था!
कल्याणी : हाँ,हाँ तो क्या ये...?
इन्दु० : हाँ, ये ही वे अर्जुन हैं, इनके मिल जाने से अब हमें बहुत मदद मिलेगी (अर्जुन से) यद्यपि इनका ठीक हाल मैं नहीं जानती और इसी से कुछ कह भी नहीं सकती तथापि इन्होंने मेरी बड़ी भारी सहायता की है और मुझे मेरे सबसे बड़े दुश्मन-शिवदत्त के हाथ से छुड़ाया है और इस समय हम दोनों एक बहुत बड़े ही जरूरी काम के लिए घर से बाहर हुई थीं।
कल्याणी : मगर यह जगह इस लायक नहीं है कि बेफिक्री के साथ गुप्त बातें की जाएं। मेरी समझ में तो हम लोग यदि ऊपर टीले पर चलें तो ज्यादा अच्छा हो।
इन्दु और साथ ही साथ अर्जुन ने भी इस बात को पसन्द किया। बेहोश गौहर घोड़े पर से उतारी गई। अर्जुन ने दोनों घोड़ों को पेड़ से बाँध दिया और जख्मी घोड़े के पैर में कुछ मलहम वगैरह लगाया, इसके बाद गौहर को पीठ पर लादा और तीनों आदमी ऊपर टीले पर चढ़ गए।
दरवाजे के पास ही साफ पत्थर की कई चौकियाँ बनी हुई थीं जिन पर तीनों बैठ गए और बातें करने लगे, अर्जुन के पूछने पर इन्दु ने उसका साथ छूटने के बाद से अब तक का हाल संक्षेप में कह सुनाया और तब अर्जुन ने अपना हाल कहा।
अर्जुन की जुबानी सब हाल सुन तथा यह जानकर कि उसने धोखा दे असली सांवलसिंह को गिरफ्तार किया और उसकी सूरत बन गौहर को कब्जे में किया है, कल्याणी चौंकी और बोली, ‘‘तब तो आपकों वे दोनों चीठियाँ भी मिल गई होंगी जो गौहर ने बलभद्रसिंह के पास भेजी तथा मनोरमा से अपने बारे में लिखवाई थीं?’’ अर्जुन ने कहा, ‘‘गौहर की तलाशी लेने का मौका तो मुझे नहीं मिला, हाँ, सावंलसिंह वाली चीठी जरूर मेरे पास है। ’’
इतना कह अर्जुन ने वह चीठी निकाली और कल्याणी को दी, कल्याणी जल्दी-जल्दी उसे पढ़ गई और तब प्रसन्न होकर बोली। ‘‘बस इस चीठी से हम लोगों का काम बखूबी निकल जायगा।’’
कल्याणी ने दुबारा इस चीठी को पढ़ा और कुछ देर तक गौर करती रही इसके बाद अर्जुन से बोली। ‘‘अच्छा आप इस विषय में जो कुछ जानते सो मुझसे कहिए।’’
यह सुन अर्जुन ने गौहर, गिल्लन और सांवलसिंह का वह सब हाल कह सुनाया जितना वह जानता था या जिसका पता कूएँ के नीचे छिपे हुए उनकी बातें सुनने से उसे लगा था।
और अंत में उसने कहा, ‘‘इनकी ये बातें सुन मैंने तय किया कि इन तीनों में से किसी को अवश्य गिरफ्तार करूँगा अस्तु साँवलसिंह का पीछा किया और उसे गिरफ्तार कर उसी की सूरत बन गौहर को अपने काबू में किया,’’
कल्याणी : (इन्दु से) अब मेरा काम बड़े मजे में और खूबसूरती के साथ निकलेगा। और गौहर के बदले अब मैं दारोगा से मिलूंगी जिसको झक मारकर मुझ पर भरोसा करना पड़ेगा और मैं उसके जरिए सहज ही मैं हेलासिंह को यहां लाने और उसके कब्जे से ताली निकालने की कोई तरकीब कर लूँगी।
इन्दु० : बेशक हम लोग बहुत मजे में अपना काम कर सकेंगे। मगर इस काम में जो खतरे हैं उसके बारे में तुम सोच लो।
कल्याणी : वह सब कुछ मैंने सोच लिया, तुम वह खयाल छोड़ दो और अर्जुन को लेकर गढ़ी के भीतर जाओ, गौहर को वहीं कैद रक्खो, मैं इसकी सूरत बन दारोगा के पास जाती हूँ।
इन्दु० : तो क्या तुम अकेली जाओगी?
कल्याणी : हां, मगर तुम घबराओ मत, कोई डर की बात नहीं है।
इन्दु० : दारोगा बड़ा ही शैतान और काँइयां है, अगर...।
कल्याणी : नहीं नहीं, तुम बिल्कुल न घबराओ। फिर मैं बिलकुल अकेली भी न रहूँगी क्योंकि मेरा वह मेहरबान अभी तक जमानिया में मौजूद है जिसका मैं तुमसे जिक्र कर चुकी हूँ।
इन्दु० : बहुत ठीक। जो तुम कहो मैं वही करूँगी।
कल्याणी ने इन्दु को कई तरह की बातें और भी समझाईं और तब अर्जुनसिंह की सहायता से अपनी चेहरे को गौहर की नकाब से ढक और उसी के कपड़े पहिन तैयार हो गई। गौहर की चीठियां तथा कुछ और सामान भी जो जरूरी समझा हिफाजत से रख दिया और तब इन्दु तथा अर्जुन से बिदा हो टीले के नीचे उतरी।
पाठक अब समझ जाएंगे कि सुन्दरी नामक जो औरत दारोगा से मिलकर हेलासिंह के नाम की चीठी लिखा ले गई थी १ वह वास्तव में कल्याणी ही थी और वह आदमी उसका वह गुप्त साथी था जो मकान से निकलने पर उसे मिला था। इसके बाद ही पाठक यह भी जान गए होंगे कि हेलासिंह से मिलकर और अपनी बातों के जाल में उसे फंसाकर लोहगढ़ी की ओर ले जाने वाली भी कल्याणी ही है। इस समय कल्याणी बहुत खुश थी कि अब उसका काम बखूबी निकल जायगा। मगर वास्तव में ऐसा न था। उसके दुश्मन चैतन्य हो गए थे और शैतान दारोगा को उसकी कार्रवाइयों का पता लग गया था। (१. देखिए भूतनाथ दसवाँ भाग, चौदहवाँ बयान।)
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