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भूतनाथ - खण्ड 3

देवकीनन्दन खत्री

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :300
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8362
आईएसबीएन :978-1-61301-020-4

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भूतनाथ - खण्ड 3 पुस्तक का ई-संस्करण

छठवाँ बयान


दोपहर का समय है और यद्यपि सूर्य भगवान अपनी पूरी तेजी से चमक रहे हैं फिर भी रात को बरस जाने वाले पानी ने अच्छी ठंडक कर रखी है और उस पर तेज हवा सूर्य की किरणों को अपना काम करने से और भी रोक रही है।

कैलाश-भवन के एक सुन्दर कमरे में इन्द्रदेव, बलभद्रसिंह और दलीपशाह बैठे आपुस में कुछ बातें कर रहे हैं। इन तीनों के सिवाय कमरे में और कोई नहीं है।

बलभद्र : हम लोग तो कल ही यहाँ पहुँच जाते पर पानी ने मुश्किल कर दी और हमें रास्ते में एक जगह बहुत देर तक ठहर जाना पड़ा। बारे आज सुबह ही महाराज से मुलाकात हो गई सब बातों का फैसला हो गया जिससे बहुत सुविधा हुई।

इन्द्र० : क्या निश्चय हुआ?

बल० : महाराज का इरादा है कि शादी इस साल हो जाय, अस्तु इस बात का इन्तजाम अब शीघ्र ही आरम्भ हो जायगा, परन्तु भैयाराजा तथा रानी साहिबा के कारण शादी में ज्यादा खुशी नहीं मनाई जा सकती।

इन्द्र० : हाँ सो ठीक है, कम-से-कम रानी साहिबा के ख्याल से महाराज का ऐसा सोचना वाजिब ही है, पर भैयाराजा का ख्याल कैसा?

बल० : जो कुछ हो, मैं ठीक नहीं कह सकता। अच्छा भैयाराजा, प्रभाकरसिंह इत्यादि दिखाई नहीं देते, क्या कारण है?

दलीप० : हाँ यही सवाल तो मैं भी आपसे किया चाहता हूँ।

इन्द्र० : प्रभाकरसिंह तो इन्दुमति तथा जमना-सरस्वती के साथ आजकल एक गुप्त स्थान में हैं जहाँ कुछ कार्यवश मैंने ही उन्हें भेज दिया है, और भैयाराजा आज सुबह मुझसे यह कहकर गये हैं कि गोपालसिंह से मिलकर कई बातें दरियाफ्त करेंगे तथा अजायबघर के विषय में भी दो-एक बातों का पता लगावेंगे।

दलीप० : वह किस लिए?

इन्द्र० : उनका विचार है कि अजायबघर ही को अपना निवास-स्थान बनावें क्योंकि उनके रहने लायक काफी जगह है तथा वह स्थान ऐसा गुप्त भी है कि जिसका हाल स्वयम् महाराज भी ठीक तरह से नहीं जानते, ईश्वर की दया से उनकी स्त्री का पता लग ही गया है अस्तु वे अपने को सब तरह के झगड़ों से अलग ही रखना चाहते हैं।

दोनों : (आश्चर्य से) क्या बहुरानी का पता लग गया?

इन्द्र : हाँ बल्कि प्रभाकरसिंह के माता और पिता भी ईश्वर की दया से जीते-जागते मिल गये। मैं यह सब हाल आप लोगों को सुनाया ही चाहता था।

इन्द्रदेव ने भूतनाथ की सहायता से बहुरानी, दिवाकरसिंह तथा नन्दरानी को अजायबघर से छुड़ाने का हाल पूरा-पूरा बलभद्रसिंह तथा दलीपशाह से कह सुनाया और अपनी बातों से दयाराम को बिल्कुल ही अलग रक्खा अर्थात् उनका कोई भी जिक्र इसमें आने न दिया क्योंकि वे उनके प्रकट होने का हाल अभी किसी पर जाहिर नहीं किया चाहते थे और ऐसा ही दयाराम की भी इच्छा थी।

दलीपशाह और बलभद्रसिंह यह सब हाल बड़ी दिलचस्पी और प्रसन्नता के साथ सुनते रहे और अन्त में बलभद्रसिंह ने कहा, ‘‘यह आपने बड़ी ही अच्छी खबर सुनाई, प्रभाकरसिंह के माता-पिता जीवित होंगे ऐसा कभी स्वप्न में भी ख्याल न आता था, कम-से-कम मैं तो उन्हें मुर्दा ही सोचा करता था। अवश्य ही उन बेचारों ने बड़ा ही कष्ट भोगा पर आखिर आपकी बदौलत उनके दु:खों का अन्त भी आ ही गया।’’

दलीप० : सो तो अभी कैसे कह सकते हैं, हाँ अगर शिवदत्त और दारोगा की कोई नयी चाल न हुई तो जरूर कहा जा सकता है कि उनके दु:ख की घड़ी समाप्त हो गई।

इन्द्रदेव : शिवदत्त तो भला अब क्या कर सकता है, हाँ दारोगा का कुछ डर बेशक है।

दलीप० : नहीं सो न कहिये, शिवदत्त अब भी अपनी कार्रवाईयों से बाज नहीं आ रहा है।आपने सुना ही होगा कि शिवदत्त राजा सुरेन्द्र से हार कर साधू हो जंगल में तपस्या करने के लिए चला गया था मगर अब कुछ दूसरी फिक्र में लग गया है। चुनार से थोड़े ही फासले पर उसने एक पुराने किले पर दखल जमाया है और उसकी मरम्मत करवा तथा नाम शिवदत्तगढ़ रख कर वहाँ राज्य कर रहा है। जंगली पहाड़ियों को सिखा-पढ़ाकर थोड़ी-सी फौज भी तैयार कर ली है तथा कई ऐयार भी उसके साथ हो गये हैं, कुछ अरसे में आप देखिएगा कि वह फिर सुरेन्द्रसिंह पर चढ़ाई करेगा और अपना खोया हुआ राज्य लौटालाने की चेष्टा करेगा।

इन्द्र० : हाँ, यहाँ तक उसकी हिम्मत हो रही है!

दलीप० : जी हाँ, और आजकल रोहतासगढ़ के दिग्विजयसिंह से भी उसका मेल-मिलाप बहुत-कुछ बढ़ रहा है जिसका कारण यह दुष्ट दारोगा ही है जिसको दिग्विजय अपने गुरु की तरह मानता है।

बलभद्र : दुष्टों और दगाबाजों का अच्छा जमावड़ा है।

दलीप० : हाँ और ताज्जुब नहीं कि ये सब मिलकर कोई गहरी चाल चलें।

इन्द्र० : हाँ क्या आश्चर्य है! हमें तो इन महाराज गिरधरसिंह पर अफसोस होता है कि बुद्धिमान होकर भी दारोगा साहब के फन्दे में इस कदर पड़े हुए हैं!

दलीप० : आप देख लीजिएगा, वह दुष्ट कभी-न-कभी महाराज पर भी जरूर हाथ साफ करेगा!

बल० : इसमें आश्चर्य ही क्या होगा? वे एकदम सूधे हैं और दारोगा की चालों को समझने की उनमें सामर्थ्य नहीं है। यह तो कुछ भैयाराजा ही की होशियारी और दूरदर्शिता थी कि वे दारोगा की कार्रवाइयों को समझ गये, मगर उनकी कुछ चली ही नहीं। दारोगा की खुशामदों में पड़ भैयाराजा की बातों पर महाराजा ने कुछ भी ध्यान नहीं दिया।

दलीप० : मैं तो समझता हूँ अब वे उन झगड़ों में न पड़ें और महाराज तथा दारोगा का फैसला उनकी किस्मतों पर छोड़ दें। ईश्वर की दया से उनको स्त्री मिल गई है, फिर बेफायदे इन झगड़ों में पड़ने की आवश्यकता ही क्या है?

इन्द्र० : हाँ, यही राय उनकी भी अब हो गई और इसी विचार से वे जमानिया गये भी हैं, अगर अजायबघर में रहने के विषय में किसी तरह की झंझट न हुई तो वे अवश्य ही वहाँ रहने लगेंगे।

दलीप० : क्या अजायबघर में इतनी जगह है कि वे वहाँ रह सकें? देखने में तो वह कुछ बड़ी इमारत नहीं मालूम पड़ती, दूसरे वह स्थान आम लोगों की निगाह में है और महाराज तथा दारोगा को उनके वहाँ होने का सहज ही में पता लग सकता है।

इन्द्र० : उसका ऊपरी हिस्सा तो बेशक बहुत काम का नहीं है मगर भीतर उसमें कई ऐसे स्थान हैं जहाँ आदमी गुप्त रीति से वर्षों तक इस प्रकार रह सकता है कि किसी को उसका गुमान भी न हो। असल में वे बड़े ही आनन्द और सैर की जगह है और उसे एक तरह पर छोटा-मोटा तिलिस्म कहना चाहिए।

बल० : यदि ऐसी बात है तो फिर क्या है, खुशी से वहाँ रह सकते हैं, वहाँ रहने से फिर दारोगा भी उनका कुछ न बिगाड़ सकेगा।

इतने में बाहर से आवाज आई, ‘‘मगर ऐसा होने पावे तब तो!’ और इसके साथ ही सभों ने भैयाराजा को कमरे के अन्दर आते देखा।

साहब-सलामत के बाद भैयाराजा के बैठने पर इन्द्रदेव ने कहा, ‘‘यह आपने अभी क्या कहा? क्या अजायबघर में भी दारोगा का जोर चल सकता है!’’

भैया० : नहीं अजायबघर के भीतरी हिस्से में तो दारोगा के बाप की भी पहुँच नहीं हो सकती मगर कठिनता यह है कि भाई साहब ने यह स्थान दारोगा को देने का इरादा कर लिया है और ऐसी हालत में मेरा वहाँ रहना मुनासिब नहीं जान पड़ता।

इन्द्र० : यह बात आपको कैसे मालूम हुई?

भैया० : गोपालसिंह की जुबानी।

इतना कह भैयाराजा ने अजायबघर के विषय में जो कुछ गोपालसिंह से सुना था कह सुनाया और तब कहा, ‘‘अब परसों इस बात का ठीक-ठीक पता लगेगा कि भाईसाहब का इरादा क्या है। अगर सचमुच उन्होंने वह स्थान दारोगा को दे दिया फिर वहाँ मेरा रहना उचित न होगा।’’

इन्द्र० : मगर इसमें कठिनता की क्या बात है? आपके रहने के लिए जगहों की कमी तो नहीं! एक से एक उत्तम स्थान आप अपने लिए पा सकते हैं, मैं कई स्थान आपको बता सकता हूँ जहाँ आप आराम के साथ रह सकते हैं। और फिर हर हालत में तिलिस्म तो आपके लिए तैयार है ही।

भैया० : हाँ सो तो है पर मुझे वह अजायबघर बहुत पसन्द था और वहाँ रह कर मैं दारोगा से कुछ छेड़खानी भी करता रह सकता था। खैर जो कुछ होगा देखा जायगा, अब इन बातों का जिक्र छोड़िये और यह बताइये कि यहाँ कुछ भोजन का भी इन्तज़ाम है या भूखे ही रहना पड़ेगा, आज सुबह से मेरे मुँह में एक दाना अन्न का नहीं पड़ा।

इन्द्रदेव ने भैयाराजा और दूसरे लोगों के लिए भोजन का इन्तजाम किया इस काम से छुट्टी पाने के बाद उन सभों में दूसरे विषय पर बातें होने लगीं।

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