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भूतनाथ - खण्ड 2

देवकीनन्दन खत्री

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :284
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8361
आईएसबीएन :978-1-61301-019-8

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भूतनाथ - खण्ड 2 पुस्तक का ई-संस्करण

चौथा बयान


दूसरे रोज दोपहर दिन चढ़ने के बाद वह औरत पुन: उसी जंगल में उसी ठिकाने पहुँची और उन दोनों आदमियों को अपने पहुँचने के पहिले ही से वहाँ एक चट्टान पर बैठे पाया। उसे देखने के साथ ही एक ने कहा, ‘‘हम लोग बहुत देर से आपका इन्तज़ार कर रहे हैं।’’

औरत : मेरे आने में कुछ देर तो हुई नहीं।

एक : ज्यादे नहीं मगर कुछ देर जरूर हुई।

औरत : (एक पत्थर पर बैठती हुई) शायद ऐसा ही हो।

दूसरा : खैर, सुनाइये क्या हाल है?

औरत : बस वही, जो कुछ कल मैं तुम लोगों को कह चुकी हूँ उससे ज्यादे कोई काम की बात मालूम न हुई, सिर्फ उतने ही से काम चलाना होगा।

पहिला : क्या आप निश्चित रूप से कह सकती हैं कि दयाराम फलानी जगह और फलाने की कैद में है?

औरत : जो कुछ मैंने कहा है उस पर किसी तरह का शक मत करो और विश्वास रक्खो कि दयाराम दारोगा साहब के कब्जे में है। चाहे दारोगा साहब ने उन्हें अपने घर में कैद रख छोड़ा हो या अपने किसी दोस्त के घर में, मगर वे हैं निश्चित रूप से दारोगा ही के कब्जे में।

एक : खैर, कोई चिन्ता नहीं, समझ लिया जाएगा, अच्छा इस विषय में कुछ कह सकती हो कि राजसिंह के यहाँ से निकल कर दारोगा के कब्जे में दयाराम क्योंकर जा फँसे?

औरत : इसका हाल मुझे कुछ भी नहीं मालूम है। राजसिंह के लड़के ध्यानसिंह ने जो चीठी भूतनाथ को लिखी थी उसमें कैदखाने की तस्वीर दिखाने के अतिरिक्त केवल इतना ही लिखा है कि- ‘बेशक मेरे बाप ने दयाराम को पकड़ा था मगर वह अपनी सजा को पहुँच गया। भूतनाथ और दलीपशाह ने धोखा खाया। असल में दयाराम को जमानिया के दारोगा ने गिफ्तार कर लिया। दयाराम अभी तक जीते हैं और जीते रहेंगे। दयाराम को अपने कब्जे में रखकर दारोगा अपना मतलब भूतनाथ से निकालने की इच्छा रखता है। भूतनाथ, सम्हलो और इस भेद को जानो। इस खबर के बदले में मैं तुमसे मित्रता की भिक्षा माँगता हूँ’। बस इतना ही मजमून लिखा था।

पहिला : (मुस्कुराता हुआ) मानो अक्षर-अक्षर तुमने याद कर रक्खा है!

औरत : बेशक ऐसा ही है, मैंने कोई शब्द कम या ज्यादे नहीं कहा है।

दूसरा : (मुस्कुराता हुआ) ध्यानसिंह अब गदाधरसिंह से दोस्ती करना चाहता है।

औरत : भूतनाथ का आजकल पता नहीं लगता, अगर ठिकाना मालूम होता तो वह चीठी भूतनाथ के पास पहुँच गई होती और भूतनाथ ध्यानसिंह से मिल कर न-मालूम क्या कर चुका होता।

पहिला : अब इस समय वह चीठी किसके पास है?

औरत : सो तो मैं नहीं कह सकती क्योंकि मैं अपनी जान बचा कर सब काम किया चाहती हूँ। अच्छा अब तो रही-सही बात भी मैंने तुमसे कह दी अस्तु जिस तरह बन पड़े तुम दयाराम का पता लगाओ और टोह लेते हुए बीच-बीच में बराबर मुझसे मिलते भी रहो।

पहिला : तुम्हारा ठिकाना कहाँ रहेगा और हम लोग कहाँ पर तुमसे मिला करें।

इस बात का जवाब उस औरत ने कुछ भी न दिया बल्कि किसी गौर में पड़ कर आश्चर्य से उस आदमी का मुँह देखने लगी। सबब इसका यह था कि कल जिन दो आदमियों से इस औरत ने बातचीत की थी वे इसका पता अच्छी तरह जानते थे मगर इस समय इससे बातें करने वाले असल में वे दोनों नहीं बल्कि आज वह भूतनाथ और उसे शागिर्द से बातचीत कर रही है। भूतनाथ को उसका ठिकाना मालूम न था इसलिए वह भूलकर ऐसा सवाल कर बैठा जिससे वह औरत तुरत समझ गई कि यह कोई दूसरा ऐयार है। वह इस भेद को खोला और कुछ कहा की चाहती थी कि उसे एक खयाल ने ऐसा करने से रोक दिया। उसके दिल में यह बात पैदा हो गई कि अगर वह वास्तव में कोई दूसरा ऐयार है तो मेरे चौंकने और जाहिर कर देने से मेरा दुश्मन बन जाएगा और शायद मुझे गिरफ्तार भी कर ले, मैं औरत की जात इस समय बिल्कुल बेबस और अकेली हूँ और ये दो आदमी हैं। यह सोच कर वह चुप हो रही और अपना चेहरा इस ढंग का बना लिया मानों कुछ गौर कर रही है। कुछ देर बाद उसने उस आदमी से कहा, ‘‘अभी तक मेरा ठिकाना कोई निश्चित नहीं हुआ मगर हाँ कल तक यह बात भी तै हो जाएगी। तुम एक दफे और तकलीफ करो और परसों पुन: मुझसे इसी जगह मिलो, मैं अपने ठिकाने का हाल तुमसे कह दूँगी तथा और भी कुछ भेद जो इस बीच में मालूम होगा वह भी बयान करूँगी।’’ इतना कह वह औरत जाने के लिए तैयार हो गई और उसे मुस्तैद देख कर वे दोनों आदमी उठ खड़े हुए तथा अपने-अपने घोड़ों की तरफ बढ़े।

हमारे पाठक जरूर ही समझ गये होंगे कि उस औरत से बातें करने वाले दोनों आदमियों में से एक भूतनाथ और दूसरा उसका शागिर्द से इस तरह दो-चार बातें हुईं :-

भूत० :मेरे लिए इतना ही मालूम हो जाना काफी है कि दयाराम जीते जागते और दारोगा के कब्जे में हैं तथा ध्यानसिंह मुझे खोजता और मुझसे दोस्ती किया चाहता है।

शागिर्द : बेशक इतना काफी है, बातें तो कुछ और भी जरूर मालूम होतीं मगर आखिर में एक सवाल जरा भूँड़ा पड़ जाने से वह समझ गई कि हम दोनों कोई दूसरे ही हैं।

भूत० :बेशक उस सवाल में मुझसे भूल हो गई और उसे शक पड़ गया। मैंने सिर्फ इस खयाल से वह सवाल किया था कि उसका पता मालूम हो जाय तो मैं और भी कोई काम निकाल सकूँ मगर खैर जितना मालूम हुआ उतना ही बहुत है। पहले तो मेरे जी में आया कि उसे पकड़ लूँ परन्तु कई बातों को सोच कर रह गया।

शागिर्द : नहीं, उसका गिरफ्तार कर लेना ठीक न होता।

इसके बाद चलते-चलते उन दोनों में जो कुछ बातें हुई वे ऐसी न थीं कि लिखी जायें।

वह औरत जब वहाँ से रवाना हुई तो उसका चेहरा बहुत उदास और सुस्त था। उसे इस बात का बड़ा ही दु:ख था कि उसका भेद किसी दूसरे ऐयार को मालूम हो गया। उसे भूतनाथ का डर बहुत ही ज्यादे लगा रहता था। क्योंकि उसको विश्वास था कि अगर यह भेद भूतनाथ को मालूम हो जायेगा तो दयाराम की जान किसी तरह न बचेगी अस्तु वह तरह-तरह की बातें विचारती हुई जमना और सरस्वती से मिलने की नीयत करके इन्द्रदेव के मकान की तरफ तेजी के साथ रवाना हुई। उसे यह बात मालूम थी कि इन्द्रदेव आजकल ‘कैलाश-भवन’ में रहते हैं और जमना और सरस्वती से उसी मकान में मुलाकात होगी।

रात दो घण्टे से ज्यादे बीत गई होगी जब वह औरत कैलाश-भवन के दरवाजे पर पहुँची। पहरेदार की जबानी इत्तिला कराने पर वह अन्दर बुला ली गई और मामूली जाँच के बाद उस जगह पहुँचाई गई जहाँ जमना, सरस्वती और इन्दुमति रहती थीं। देखने के साथ ही जमना, सरस्वती ने उसे बड़े प्यार से अपने पास बैठाया और पूछा, ‘‘कुछ पढ़ती है?’’ जिसके जवाब में उसने कहा, ‘‘हाँ, महाभारत पढ़ने लगी हूँ!’’

यह एक गुप्त इशारा था जो इसके पहिले वाली मुलाकात में जमना और सरस्वती ने इसे सिखाया था और कहा था कि ‘मुलाकात होने पर मेरे सवालों के जवाब में जब तू ऐसा कहेगी तब मैं समझूँगी कि यह वास्तव में ‘छन्नो’ है। ऊपर के बयान में यह अपने दोनों साथियों से कह चुकी है कि जमना और सरस्वती से उसकी मुलाकात हो चुकी है।

छन्नो : (जमना और सरस्वती से) कहो मिजाज तो अच्छा है?

सरस्वती : मेरा मिजाज अच्छा है या बुरा सो क्या तुझसे छिपा है!

छन्नो : छिपा तो नहीं है और मैं सब कुछ जानती भी हूँ परन्तु फिर और कुछ नहीं तो शारीरिक अवस्था का कुशल को पूछना ही पड़ता है।

सरस्वती : मनुष्य की शारीरिक अवस्था भी आन्तरिक अवस्था के ही अधीन है। जिसकी अन्तरात्मा प्रसन्न है उसका शरीर भी सबल और पुष्ट रहता है और जिसकी अन्तरात्मा दु:खी है उसका शरीर बिना रोग के भी सदैव रोगी रहता है। मेरी अन्तरात्मा का हाल तुझसे छिपा नहीं है और जो कुछ छिपा था सो भी उस दिन मुलाकात होने पर मैंने तुझसे दिल खोलकर कह दिया। अब तो मेरी प्रसन्नता का कोई कारण भी मेरे पास नहीं रह गया जिससे इस बात की आशा हो कि मुझे भी किसी दिन प्रसन्न होने और दिल खोल कर हँसने का मौका मिलेगा सिवाय इसके कि दुश्मन पर फतह पाऊँ और उसे अत्यन्त दु:खी देख कुछ काल के लिये अपने को सुखी मानूँ।

छन्नो : नहीं-नहीं, ऐसा नहीं सोचना चाहिए। उस महामाया की माया का अन्त नहीं है, और न कोई बात उसके लिए कठिन है। अगर इतने दिन तक तुम दोनों को विधवा रख के वह आज सधवा बना दे तो यह भी उसके लिए कुछ दूर नहीं।

जमना० :क्यों छन्नो, क्या तू हम लोगों से दिल्लगी करती है, या हम लोगों के पाप की कोई बात तूने सुनी है!

छन्नो : (दाँत तले जबान को दबा कर) राम राम राम! भला ऐसी भी कोई बात है कि मैं तुम दोनों को व्याभिचारिणी समझूँ या इस तरह की गन्दी दिल्लगी करूँ। ऐसा कभी खयाल भी न करना। बात यह है कि मैं तुम दोनों को तुम्हारे पति के अभी तक जीते रहने की मुबारकबाद देती हुई खुशखबरी सुनाने के लिए तैयार हूँ और इसीलिए इस ढंग की बातें कर रही हूँ।

दोनों : यह दूसरी दिल्लगी है!

छन्नो : मैं तुम्हारी ही कसम खाकर कहती हूँ कि तुमसे झूठ नहीं बोलती और यही सच्ची खबर सुनाने के लिए मैं तुम्हारे पास इस समय आई हूँ।

जमना० : क्या तू ईश्वर और धर्म की कसम खाकर ऐसा कह सकती है?

छन्नो : हाँ-हाँ, ईश्वर और धर्म की ही कसम खाकर कहती हूँ कि इसका पूरा-पूरा सबूत पाकर ही मैं तुम्हें खबर देने के लिए आई हूँ, परन्तु वह खबर सुना देने के बाद मैं नहीं कह सकती कि दुश्मनों के हाथ से जीती बचूँगी या नहीं क्योंकि जब मेरे दुश्मनों और उनके साथियों को यह बात मालूम हो जायेगी कि मैंने उनसे अलग होकर यह भेद तुमसे कह दिया है तब वे मुझे जान से मार डालने के लिये कोई बात उठा न रक्खेंगे। खैर मुझे अपने मरने की भी चिन्ता नहीं, अगर चिन्ता है तो केवल इतनी ही कि मैं अपनी जिन्दगी में तुम दोनों को प्रसन्नता के साथ तुम्हारे पति के पास बैठी हुई देख लूँ।

छन्नो की बातों ने जमना और सरस्वती के दिल में प्रसन्नता के साथ-ही-साथ एक अजीब तरह की खलबली पैदा कर दी। मारे खुशी के रोमांच होकर उनका कंठ रुद्ध हो गया और बड़ी मुश्किल से अपने को सम्हाल कर उन्होंने छन्नो की बात का जवाब दिया-

जमना० :अगर वे जीते हैं तो कहाँ और किस अवस्था में हैं?

छन्नो : जमानिया के दारोगा ने उन्हें कैद कर रखा है मगर किस अवस्था में हैं सो नहीं कह सकती।

जमना० :यह तुझे कैसे मालूम हुआ?

छन्नो खुद मेरी मौसेरी बहिन निरंजनी ने इस बात का पता लगाया है इस काम में मैं भी उसके साथ थी और साथ देना चाहती थी मगर जब मैंने देखा कि निरंजनी का दिल बेईमान हो गया और वह दयारामजी को खोज निकालने के साथ-ही-साथ स्वयं जमना या सरस्वती बन कर उनके साथ सुख किया चाहती है तब मैंने उसका साथ छोड़ दिया और तुम्हें यह बताने के लिए आई हूँ कि तुम अपनी रक्षा करने के साथ-ही-साथ स्वयं उन्हें निरंजनी के पहिले ही कैद से छुड़ा लो और इस तरह निरंजनी को अपने ऊपर अहसान जताने का भी मौका मत दो इन्द्रदेवजी की मदद पाकर तुम दोनों जो कुछ कर सकती हो वह निरंजनी को कदापि नसीब नहीं हो सकता, तुम इन्द्रदेवजी को यहां बुलाओ या अपने साथ मुझे उनके पास ले चलो। मैं सब हाल उनके सामने ही बयान कर दूँगी जिसमें दोहराने की नौबत ही न आवे और काम में देर न हो।

इतना सुनते ही जमना और सरस्वती उठ खड़ी हुईं और छन्नो का हाथ थामे हुए इन्द्रदेव के पास रवाना हुईं जो इस समय सान्धोपासन से निवृत्त होकर अपने एकान्त के कमरे में बैठे हुए कुछ लिख रहे थे।

इन्द्रदेव इन तीनों को देख कर प्रसन्न हुए और बैठने का इशारा करके बोले, ‘‘मैं इस समय तीनों को बुलाने वाला ही था, (छन्नो की तरफ देख के) यह क्या दयाराम के अभी तक जीते रहने की खबर लेकर आई है।’’

जमना (बड़े ही आश्चर्य के साथ) जी हाँ, ऐसा ही है, आपको यह बात कैसे मालूम हुई

इन्द्र : अभी तुरत ही मुझे इस बात की खबर लगी है और मालूम हुआ कि वे अभी तक दारोगा की कैद में पड़े हैं, परन्तु मैं यह नहीं कह सकता कि यह खबर कहाँ तक सच है

छन्नो : बेशक यह खबर सच है और मैं इसका पूरा-पूरा सबूत आपको दूँगी।

इन्द्र : अगर यह खबर सच है तो इससे बढ़कर कोई खुशी मेरे लिए नहीं हो सकती, बैठो खुलासा हाल बयान करो।

जमना० :क्या आपको आपके किसी शागिर्द ने यह खबर दी है?

इन्द्रदेव : हाँ, कल छन्नो एक जंगल में बैठी हुई दो ऐयारों से इसी विषय में बातचीत कर रही थी और मेरा एक शागिर्द उसी जगह छिपा सब बातें सुन रहा था..।

छन्नो : (बात काट कर) क्या भूतनाथ ने वे सब बातें सुन लीं और उसे भी दयाराम जी के जीते रहने की खबर लग गई?

इन्द्रदेव : हाँ, उसे सब बातें मालूम हो गईं मगर कोई चिन्ता नहीं, अब तुम्हारे कहने से मुझे विश्वास हो गया और मैं होशियार हो गया हूँ। मेरे सामने उसकी कोई कार्रवाई चल न सकेगी चाहे वह नेकनीयती के साथ करे या बदनीयती के साथ। भैयाराजा का कथन तो यही है कि भूतनाथ किसी प्रकार की बुराई न करेगा, उसकी नीयत साफ हो गई, परन्तु मुझे उस पर अभी तक विश्वास नहीं होता (छन्नो से) तुम्हें यह सुनकर आश्चर्य मालूम होगा कि उस एकान्त जंगल में तुम लोगों की बात सुनने के लिए मेरा शागिर्द क्योंकर जा पहुँचा!

तो मैं यह कह कर तुम्हारा आश्चर्य दूर करे देता हूँ कि मेरा शागिर्द आज महीने-भर से तुम्हारे और निरंजनी के पीछे लगा हुआ है। इसका सबब यह है कि जमना और सरस्वती ने राजसिंह के कुल का अपने हाथ से सत्यानाश करने का प्रण किया है जो दयाराम को गिरफ्तार कर ले गया था। यद्यपि यह बात मुझे पसन्द नहीं है तथापि इन दोनों की खातिर मुझे सब कुछ करना ही पड़ता है और इसीलिए आजकल मेरे दो शागिर्द राजसिंह के इलाके में और उसके घर के इर्द-गिर्द कई बातों की टोह लगाने के लिए घूमा करते हैं, किसी कारणवश राजसिंह के लड़के ध्यानसिंह को इस बात की खबर लग गई कि आजकल कई ऐयार उसके इलाके में घूम रहे हैं जिससे वह चैतन्य हो गया और डर के मारे उसने घर से निकलना तक भी बन्द कर दिया। साथ ही इसके वह गदाधरसिंह को दोस्त बनाने की फिक्र करने लगा यह सोच कर कि वह जमना और सरस्वती का दुश्मन है। इसी बीच में तुम्हारी बहिन निरंजनी ने अपने ऐयारों के साथ वहाँ पहुँच कर उसकी लड़की को हर लिया और उसे कैद करके अपने घर ले गई। मेरे शागिर्द ने मुझे इस बात की इत्तिला दी और मैं स्वयं इस बात की जांच में लग गया मगर जमना और सरस्वती को मैंने इस बात की खबर नहीं दी और उसके आगे का भेद मालूम करने लगा। काशी के जिस मकान में आजकल तुम और निरंजनी रहते हो वह मकान मेरा ही है। मेरे शागिर्द ने निरंजनी के एक ऐयार को गिरफ्तार कर लिया और खुद उसकी सूरत बन निरंजनी के साथ रहने लगा। उसी ने बातें बना कर और बहुत कुछ ऊँच-नीच समझा कर मेरा मकान जिसमें मेरे नौकर-चाकर रहा करते थे और निरंजनी को इस बात की कुछ भी खबर न थी, खाली करा थोड़े ही किराये में निरंजनी को दिलवा दिया और तुम लोगों ने उसी मकान में आकर डेरा डाला, तथा ध्यानसिंह की लड़की को भी निरंजनी ने उसी मकान में ले जाकर कैद किया, इसके बाद निरंजनी ने अपने ऐयारों की मदद से जिनमें मेरा शागिर्द भी शामिल था ध्यानसिंह के उस आदमी को मार डाला जो ध्यानसिंह की चीठी लेकर भूतनाथ की खोज में जा रहा था। उस चीठी के साथ दयाराम की कैद के विषय में एक नक्शा भी था। मेरे शागिर्द ने उस नक्शे और चीठी को अच्छी तरह देखा और पढ़ा था-जब मेरे शागिर्द ने इन बातों की मुझे खबर दी तो तब मैंने गुप्त राह से वहाँ पहुँच कर उस लड़की को कैद से छुड़ाया। आज ही वह लड़की यहाँ लाई गई है। इस समय मैं जमना और सरस्वती से उसकी मुलाकात कराने वाला था, पर खैर इससे तुम समझ गई होगी कि मेरा वह शागिर्द अभी तक तुम लोगों के पीछे लगा हुआ है और इसी सबब से उसने उस जंगल में पहुँच कर तुम्हारी बातें सुन ली थीं।

इन्द्रदेव की बातें सुन कर छन्नो हैरान हो गई और उसने हाथ जोड़ कर इन्द्रदेव से कहा, ‘‘आप धन्य हैं! आपकी बुद्धिमानी का कोई हद्द-हिसाब नहीं। मैं तो यही समझे हुई थी कि मैं यह खुशखबरी आपको सुनाऊँगी मगर अब मालूम हुआ कि आप इस विषय में मुझसे कहीं ज्यादा जानकार हैं जिससे मुझे अब अपनी कार्रवाई पर शर्म आती है।’’

इन्द्रदेव : नहीं-नहीं, इसमें शर्म की कोई बात नहीं, मैं इस बात से बहुत प्रसन्न हूँ कि तुमने नेकनीयती के साथ यहाँ आकर इन सब बातों की जमना और सरस्वती को इत्तिला दी और इसे सुनकर अपने शागिर्द की बातों पर और भी विश्वास हो गया। अच्छा अब कहो कि तुमने यहाँ आकर जमना और सरस्वती को क्या बातें सुनाईं?

इन्द्रदेव की बातें सुन कर जमना और सरस्वती बहुत ही प्रसन्न हुईं तथा छन्नो ने भी जो कुछ मालूम था सब हाल इन्द्रदेव से बयान किया और अब भविष्य में क्या करना चाहिए इस विषय में राय पूछी। हमारे प्रेमी पाठक भी इस बात को समझ गये होंगे न समझे हों तो अब समझ जायें कि निरंजनी ने जिस लड़की को वह लोहे वाले जंगले में कैद कर रक्खा था वह ध्यानसिंह की ही लड़की थी और जो उस कैदखाने में उसका मददगार बनकर पहुँचा था (अथवा जमीन के अन्दर से निकला था) वह इन्द्रदेव थे। इसके बाद उन सभों में फिर इस तरह बातचीत होने लगी-

सरस्वती : (इन्द्रदेव से) तो क्या वास्तव में अभी तक वे जीते हैं।

इन्द्रदेव : मालूम तो ऐसा ही होता है, ईश्वर करे यह बात सच निकले और मं  उन्हें छुड़ा कर तुम लोगों के पास ला सकूं। (छन्नो से) इस भेद को अब तुम बहुत गुप्त रखना जिससे दारोगा के कान तक यह बात पहुँचने न पावे। (१. यह बात हमेशा के लिए गुप्त रखी गई और इसलिए चन्द्रकान्ता सन्तति में भूतनाथ का हाल कहते हुए दलीपशाह ने इस किस्से को नहीं बखान किया क्योंकि उसे यह हाल मालूम न था।)

छन्नो : जी नहीं, अब मैं, इस विषय में किसी से भी बातचीत न करूँगी।

इन्द्रदेव : और तुम अब कुछ दिनों तक हमारे इस मकान से बाहर भी न जाना।

छन्नो : जो आज्ञा।

इन्द्रदेव : अभी तक मैंने ध्यानसिंह की लड़की से कुछ विशेष बातचीत नहीं की है अस्तु उसे बुलवाता हूँ। तुम उससे बातचीत करो और मैं भी उससे पूछकर देखता हूँ कि इस विषय में और क्या-क्या बातें बताती है।

छन्नो : जरूर बुलवाना चाहिए। अच्छा यह तो बताइये कि निरंजनी का वह ऐयार जिसे आपके शागिर्द ने पकड़ लिया था अब कहाँ है?

इन्द्रदेव : वह मेरे कब्जे में है, उसे अभी तक इस बात का ज्ञान नहीं हुआ कि उसे किसने गिरफ्तार किया या वह किसके मकान में है और भविष्य में भी उसे इस बात की खबर न होगी क्योंकि वह बेहोश करके किसी जंगल-मैदान में छोड़ दिया जायेगा जहाँ से वह तुम्हारी बहिन निरंजनी के पास पहुँच जायगा। आज ही उसे भी रिहाई देने की मेरी इच्छा है।

इतना कह कर इन्द्रदेव उठे और बाहर जाकर उन्होंने अपने किसी आदमी को हुक्म किया कि ध्यानसिंह की लड़की को यहाँ ले आये। थोड़ी ही देर में वह लड़की वहाँ आ पहुँची जहाँ जमना, सरस्वती, छन्नो और इन्द्रदेव बैठे बातें कर रहे थे।

इस लड़की की सूरत-शक्ल के विषय में कुछ थोड़ा-सा निरंजनी के बयान में लिख आये हैं, यहाँ पुन: लिखने की कोई जरूरत नहीं जान पड़ती। यहाँ केवल इतना ही लिख देना काफी होगा कि अभी तक उसके चेहरे पर से उदासी और घबराहट दूर नहीं हुई। इसका विशेष कारण तो यह जान पड़ता है कि बेचारी वहाँ भी कैद थी और यहाँ भी अपने को कैदी ही समझती थी।

इन्द्रदेव की आज्ञा पाकर वह लड़की जिसका नाम ज्वाला था बैठ गई। तब इन्द्रदेव ने उससे कहा, ‘‘बेटी, मैं तुझे कई दफे कह चुका हूँ कि तू अपने दिल से डर और उदासी को दूर कर दे, मेरे यहाँ तुझे किसी भी तरह की तकलीफ न होगी, मगर फिर भी न-मालूम क्यों तुझे मेरी बातों का विश्वास नहीं होता।’’

ज्वाला : मुझे आपकी बातों पर पूरा विश्वास है। मुझे आपका बहुत भरोसा है, आप मेरे बहुत आड़े वक्त में काम आये हैं और आपने मेरी रक्षा की है। मैंने निरंजनी के घर में जो-जो तकलीफें उठाई हैं वह मेरा ही जी जानता है। अगर आप मेरी सहायता न करते तो न-मालूम और भी क्या-क्या तकलीफें झेलती पड़तीं या मैं जीती भी रहती या नहीं, परन्तु अब मुझे सिवा अपने घर पहुँचने के और किसी बात की फिक्र नहीं है।

इन्द्रदेव : मैं तुझसे इस बात का भी वादा कर चुका हूँ कि तुझे बड़ी इज्जत के साथ तेरे घर पहुँचा दूँगा।

ज्वाला : नि:सन्देह आपने वादा किया है, आपकी बात कदापि झूठ नहीं हो सकती, (छन्नो की तरफ देख के) पर इनको देख के मैं इस समय पुन: डर गई हूँ क्योंकि इन्हें निरंजनी के साथ देख चुकी हूँ। यद्यपि इनके हाथ से मुझे किसी तरह की तकलीफ नहीं हुई बल्कि मार-पीट के समय इन्होंने मेरी सिफारिश ही की थी और मुझे बचाया भी था परन्तु फिर भी..।

इन्द्रदेव : तेरा विचार ठीक है और डरना उचित ही है मगर मैं तुझे जोर देकर कहता हूँ कि इससे डरने की तुझे कोई जरूरत नहीं, इसके और निरंजनी के मिजाज में उल्टे-सीधे का फर्क है। निरंजनी की बुरी नीयत देख कर इसने निरंजनी का साथ छोड़ दिया और अब मेरे घर में (जमना और सरस्वती की तरफ इशारा करके) इन दोनों के पास चली आई है क्योंकि यह लड़कपन ही से इन दोनों के साथ प्रेम और सचाई के साथ रहती आई है। तू इन दोनों को नहीं पहिचानती और अभी मैं बताऊँगा भी नहीं कि ये दोनों कौन हैं पर इस बात के लिये तुझे दु:ख न मनाना चाहिए। इतना मैं जोर देकर कहूँगा कि इन दोनों से तुझे भी डरना न चाहिए और इससे तो जिसका नाम छन्नो है, कदाचित् तुझे मालूम हो, सिवाय भलाई के बुराई की उम्मीद ही मत कर। इसे मैं आज से नहीं बल्कि बहुत दिनों से जानता हूँ, अगर ऐसा न होता तो इस पर विश्वास करके आज मैं इसे अपने घर में कदापि न आने देता।

ज्वाला : आपके कहने से मैं बिल्कुल बेफिक्र हो गई परन्तु यह जानने की इच्छा जरूर है कि (जमना और सरस्वती की तरफ इशारा करके) ये दोनों कौन हैं और ये छन्नो यहाँ क्यों आई हैं?

इन्द्र : मैं पहिले ही कह चुका हूँ कि इन दोनों का भेद अभी मैं तुझसे न कहूँगा, हाँ यदि तू कुछ दिन यहाँ रह गई तो तुझसे कुछ छिपा भी न रहेगा। छन्नो यहाँ दयाराम का समाचार लेकर आई है जिसका भेद जानने के लिए ही निरंजनी ने तुझे गिरफ्तार किया था। तुझे यह बात अभी मालूम न हुई होगी कि निरंजनी ने तेरे बाप के एक सिपाही को मार कर एक चीठी, जिसके साथ और भी कई चीजें थीं, ले लीं जो कि तेरे बाप ने भूतनाथ के पास उससे दोस्ती करने के इरादे से भेजी थीं और उसी से दयाराम का पूरा हाल निरंजनी को मालूम हो गया है।

ज्वाला : यह हाल मुझे मालूम नहीं है, हाँ दयारामजी के विषय में मैं बहुत-कुछ निरंजनी को बता चुकी हूँ। मेरे पिताजी को बहुत दिनों तक इस बात की कुछ खबर न लगी कि उनके घर में से दयाराम को कौन चुरा ले गया। अभी हाल ही में इस बात का पता लगा है कि यह काम जमानिया के दारोगा ने किया है और अभी तक दयारामजी उसी के घर में है। (हाथ जोड़ कर) मेरे दादा की तरह नि:सन्देह मेरा पिता भी इस मामले में दोषी हैं परन्तु मैं बिल्कुल ही बेकसूर हूँ। यदि मैं किसी योग्य होती तो पिता के घेरे में कदापि न रहती और न उसके साथ ही अपनी भी बेइज्जती कराती।

इन्द्रदेव : बेशक यही बात है और अब भी मैं तुझे यही राय दूँगा कि पिता के घर का नाम छोड़ दे क्योंकि तेरा पिता ताज्जुब नहीं कि किसी दिन अपने कर्मों का फल इसी जीवन में पा जाय, ऐसी अवस्था में तुझे वहाँ बड़ी तकलीफ होगी।

ज्वाला : तकलीफ क्या मैं बिल्कुल ही बेइज्जत हो जाऊँगी और किसी काम के लायक न रहूँगी। अब तो मैंने आप ही को अपना पिता और ईश्वर दोनों ही मान लिया है। आप जो आज्ञा देंगे वही करूँगी। मैं अपने घर का यदि कुछ ख्याल करती हूँ तो केवल अपनी माँ की मुहब्बत से।

इन्द्रदेव : ठीक है और अगर ईश्वर चाहेगा तो तू अपनी माता से भी किसी अच्छे मौके पर मिला दी जायेगी। यदि तेरी माता को यह बात मालूम होगी कि तू इतने दिनों तक इन्द्रदेव के यहाँ रही है तो वह कदापि तुझसे असंतुष्ट न होंगी और न तेरी इज्जत या चालचलन में किसी तरह का फर्क मानेगी।

ज्वाला : नि:सन्देह ऐसा ही है, आपके यहाँ रहने में मेरा किसी प्रकार का नुकसान नहीं।

इन्द्रदेव : (जमना, सरस्वती और छन्नो से) अब तुम लोग इस लड़की को अपने साथ ले जाओ और इसे अपनी लड़की समझ कर खातिर के साथ अपने साथ रक्खो। (ज्वाला से) इन तीनों के साथ तू बेफिक्री के साथ रह कर ईश्वर से शुभ दिन की प्राप्ति की प्रार्थना कर, साथ ही दयाराम के विषय में जो कुछ ये तीनों पूछें उसके बयान में किसी प्रकार का संकोच मत कीजियो।

ज्वाला : जो आज्ञा।

इसके बाद जब वहाँ से उठने की तैयारी हुई तब छन्नो ने इन्द्रदेव की तरफ देख कर कहा, ‘‘एक बात मैं आपसे कहना भूल गई।’’

इन्द्न : वह क्या?

छन्नो : आपको मालूम ही होगा कि भूतनाथ से और नागर से दोस्ती है।

इन्द्रदेव: हाँ, मैं इस बात को बखूबी जानता हूँ।

छन्नो : इसलिए भूतनाथ अपने हाल-चाल की चीठी जिसमें बहुत-सी भेद की बातें रहती हैं बराबर नागर को लिखा करता है निरंजनी भूतनाथ के साथ की लिखी हुई बहुत-सी चीठियाँ नागर से मँगनी माँग लाई है और उनसे भूतनाथ के भेद जान कर उस पर अपना रोआब जमाना चाहती है। अभी तक वे चीठियाँ निरंजनी के पास ही मौजूद हैं।

इन्द्र : अच्छा किया जो तूने यह हाल मुझे बता दिया, अगर हो सका तो इस विषय में भी कार्रवाई करूँगा। अच्छा अब तुम लोग जा कर आराम करो।

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