अतिरिक्त >> आराधना आराधनासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
सभी तुम्हारे जीते, हारे
सभी तुम्हारे जीते, हारे।
बालपन, चपलता की गोद
किये तरह-तरह के विनोद,
छये सुखशर के आमोद
लाखों आँखों के तारे।
वेदना-नदी में दिन-रात
मारे बेचारों ने हाथ
पार किये जाने के साथ
विद्या के पाथ पसारे।
आज नदी जल बन घटता है
पौरुष का पुरुष पलटता है
ज्ञान मान-मानों बटता है
बिसरे गुण बिना बिसारे।
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