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आराधना
आराधना
प्रकाशक :
सरल प्रकाशन |
प्रकाशित वर्ष : 2011 |
पृष्ठ :100
मुखपृष्ठ :
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पुस्तक क्रमांक : 8338
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आईएसबीएन :0 |
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2 पाठकों को प्रिय
248 पाठक हैं
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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
सभी तुम्हारे जीते, हारे
सभी तुम्हारे जीते, हारे।
बालपन, चपलता की गोद
किये तरह-तरह के विनोद,
छये सुखशर के आमोद
लाखों आँखों के तारे।
वेदना-नदी में दिन-रात
मारे बेचारों ने हाथ
पार किये जाने के साथ
विद्या के पाथ पसारे।
आज नदी जल बन घटता है
पौरुष का पुरुष पलटता है
ज्ञान मान-मानों बटता है
बिसरे गुण बिना बिसारे।
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