अतिरिक्त >> आराधना आराधनासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
गोरे अधर मुसकायी
गोरे अधर मुसकायी
हमारी वसन्त विदाई।
अंग-अंग बलखायी
हमारी वसन्त विदाई।
परिमल के निर्झर जो बहे ये,
नयन खुले कहते ही रहे ये—
जग के निष्ठुर घात सहे ये,
बात न कुछ बन पायी,
कहाँ से कहाँ चली आयी।
भाल लगा उषा का टीका,
चमका सहज सँदेसा पी का,
छूटा भय पतिपावन जी का,
फूटी तरुण अरुण अरुणाई,
कि छूट गयी और सगाई।
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