अतिरिक्त >> आराधना आराधनासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
दे सकाल, काल, देश
दे सकाल, काल, देश
दिशाबधि अशेष, शेष।
सोये जो कमल सलिल
कर सुहास-वास, अखिल,
खिलकर खोले दुर्मिल
मेल-मोल के सुकेश।
विंदु-वदन बने इन्दु
लहरे सुख-मुखर सिन्धु
इन्द्र एक विभात देश।
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