अतिरिक्त >> आराधना आराधनासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
अभय शंख बजा तुम्हारा विश्व में
अभय शंख बजा तुम्हारा विश्व में
प्रथम रवि की किरण की किल जब खिली
कली के गोरे अधर को चूमकर
अनिल से पल्लव-हिंडोला झूलती।
सरल आँखों में हँसी संसृति बसी
कामना अनजान उर में खोलकर
पंख, उड़ने को प्रियच्छवि की दिशा
मधुरतम से मधुरतम होती हुई
रूप से गुण, पुष्प से मधु की तरह
साथ, शातक्रतव के पाथेय का।
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