अतिरिक्त >> आराधना आराधनासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
गत शत पथ पर
गत शत पथ पर
निर्जर रथ पर
तिमिर तीर हर तरुणे!
निःसंशय क्षय,
हँसा पराजय;
रुका काम, भय, करुणे!
आनत दृग की
चितवन मृग की
निर्निमेष नृग की है;
कुसुम हासमय
मुदा मदाशय
खुली महालय की जय!
एवम्विघ तुम
जीवन कुकंम
चढ़ी देह द्रुम पर हो;
कीर्ण कारिणी,
शीर्ण सारिणी,
तीर्ण तारणी कर हो!
फिर भी युग पद
बन्दूँ निर्मद
विश्व वशम्वद करणे!
नग्न बाहु द्वय
चरण हार, जय
नत शिर पद है, शरणे!
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