अतिरिक्त >> आराधना आराधनासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
आँखें जहाँ प्रेमिका की थीं
आँखें जहाँ प्रेमिका की थीं,
पाँखें वहाँ तुम्हारी ही थीं।
अधर सुधा के स्वर जो घोले,
निकले वे वाणी के तोले,
रानी कल्याणी भी होले
ऐसी क्या आशाएँ भी थीं।
कहीं न मुझको स्थान एक तिल,
जहाँ भी गया दूभर, झिलमिल
दयादृष्टि ही जो उभरा दिल,
छोड़ी वे जो कड़ियाँ ली थीं।
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