अतिरिक्त >> आराधना आराधनासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
मन न मिले न मिले हरि के पद
मन न मिले न मिले हरि के पद।
अंश हुए न, हुए न वशम्वद।
गलती रही वासना जी तन,
न बना यौवन, न बना जीवन,
भरे हुए उपवन में अनमन
मानव रहा अमान, भरा-मद।
ज्ञान गया तो प्रायः पशु है,
वसु न हुआ तो निर्बल असु है,
वसुन्धरा में अन्ध दस्यु है,
अपने पन में अपण, न आच्छद।
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