अतिरिक्त >> आराधना आराधनासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
खिरनी के पेड़ के तले
खिरनी के पेड़ के तले,
बैठी थीं तुम भले-भले।
आँखों से चिड़िया उड़ती थीं,
उससे कुल पिड़ियाँ जुड़ती थीं,
पहने साड़ी सफेद,
भावों से गया भेद;
लोगों ने रूप पी लिया गले-गले।
धूप उठ रही थी, नभ सोना
झरता था सर पर, सुख बोना,
धीरे-धीरे चल दीं,
सारी दुनियाँ छल दीं,
पीछे भाई के हरहों के डगले।
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