अतिरिक्त >> आराधना आराधनासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
रमणी न रमणीय
रमणी न रमणीय;
कामना कमनीय।
विश्व यह दूसरा
जहाँ भोजन भरा,
रूप की प्रतिकरा
हुई दुर्दमनीय।
यहाँ इसकी विजय
देह जब तक न क्षय,
उस पार जो उदय
ज्ञान वह नमनीय।
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