अतिरिक्त >> आराधना आराधनासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
भरी तन की भरन
भरी तन की भरन
जगत उस कुए की,
परी उतरी तरन।
दो घड़े, काँख, कर,
कन्धे पड़ी रसर,
चली अपनी डगर,
देखने की सरन।
देहली नाघ कर,
दहलीज के उधर,
घनौची पर सुधर
घड़े रक्खे बरन।
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