अतिरिक्त >> आराधना आराधनासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
मानव जहाँ बैल-घोड़ा है
मानव जहाँ बैल-घोड़ा है,
कैसा तन-मन का जोड़ा है?
किस साधना का स्वाँग रचा यह,
किस बाधा की बनी त्वचा यह,
देख रहा है विज्ञ आधुनिक
वन्य भाव का यह कोड़ा है।
इस पर से विश्वास उठ गया,
विद्या से जब मैल छुट गया,
पक-पककर ऐसा फूटा है,
जैसा सावन का फोड़ा है।
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