अतिरिक्त >> आराधना आराधनासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
रहते दिन दीन शरण भज ले
रहते दिन दीन शरण भज ले।
जो तारक सत वह पद-रज ले।
दे चित अपने ऊपर के हित,
अन्तर के बाहर के अवसित,
उसको जो तेरे नहीं सहित,
यों सज तू, कर सत की धज ले।
जब फले न फल, तू हो न विकल,
करके ठग करतब को कर कल;
इस जग के मग तू ऐसे चल,
नूपुर जैसे उर में बज ले।
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