अतिरिक्त >> आराधना आराधनासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
जय अजेय अप्रमेय
जय अजेय, अप्रमेय
जय जग के परम पार।
जय जीवों के जप के,
तप के, तनु-सूत्रधार।
गरल-कण्ठ हे अकुण्ठ,
बैठक बैकुण्ठ-धाम;
जय शिव, जय विष्णु, जिष्णु,
शङ्कर, जय कृष्ण, राम;
शतविध नमानुबन्ध
बान्धव हे निराकार—
जय अजे, अप्रमेय,
जय जग के परम पार।
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