लोगों की राय

अतिरिक्त >> आराधना

आराधना

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :100
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 8338
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 2 पाठकों को प्रिय

248 पाठक हैं

जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ



जय अजेय अप्रमेय


जय अजेय, अप्रमेय
जय जग के परम पार।
जय जीवों के जप के,
तप के, तनु-सूत्रधार।

गरल-कण्ठ हे अकुण्ठ,
बैठक बैकुण्ठ-धाम;
जय शिव, जय विष्णु, जिष्णु,
शङ्कर, जय कृष्ण, राम;
शतविध नमानुबन्ध
बान्धव हे निराकार—
जय अजे, अप्रमेय,
जय जग के परम पार।

¤
¤

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book