अतिरिक्त >> आराधना आराधनासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
भवन, भुवन हो गया
भवन, भुवन हो गया।
दुःख—ताप खो गया।
परिधि से घिरा हुआ,
सुमुख से फिरा हुआ,
आधि का चिरा हुआ,
भर-भरकर रो गया।
अपना जपना रहा,
सत्य कल्पना रहा,
यौवन सपना रहा,
ज्ञान वही धो गया।
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