अतिरिक्त >> आराधना आराधनासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
तुमसे लाग लगी जो मन की
तुम से लाग लगी जो मन की
जग की हुई वासना बासी।
गङ्गा की निर्मल धारा की,
मिली मुक्ति, मानस की काशी।
हारे सकल कर्म बल खोकर,
लौटी माया स्वर से रोकर,
खोले नयन आँसुओं धोकर,
चेतन परम दिखे अविनाशी।
नि:स्पृह, नि:स्व, निरामय निर्मम,
निराकाङ्क्ष, निर्लेप, निरुद्गम,
निर्भय, निराकार, नि:सम शम,
माया आदि पदों की दासी।
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