अतिरिक्त >> आराधना आराधनासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
हरि-भजन करो भू-भार हरो
हरि-भजन करो भू-भार हरो,
भव सागर निज उद्धार तरो।
गुरु जन की आशिष सीस धरो,
सन्मार्ग अभय होकर विचरो।
परकाल कराल संम्हाल करो,
यह लोक न शोक हरे, सँवरो,
भ्रम के भुज भूल न न पाँव धरो,
अबया-पद-आसन साँस भरो।
सुख के अनुरंजन दु:ख महा,
दुख से सुख है यह सत्य कहा,
तन मानव क्या, हत ज्ञान रहा,
सुरलोक-विधान-विमान बरो।
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