अतिरिक्त >> आराधना आराधनासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
जीकर जो प्राण न मार सके
जीकर जो प्राण न मार सके
मरकर क्या जीतोगे जीवन?
तरकर जो पार न की सरिता
बूड़े क्या जाओगे उस तन!
जब खुले हाथ पाये न कमा
बैठी भी घर आयी न रमा,
यह कौन चला, यह कौन थमा
कुछ कह न सके, क्या हुई जतन!
ऐसे छल कपट न पटे प्राण,
फूटा न कण्ठ, निकला न गान,
सूखी झरकर रह गयी बान,
मधुऋतु में कुम्हलाया उपवन।
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