अतिरिक्त >> आराधना आराधनासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
मन का समाहार
मन का समाहार
करो विश्वाधार।
गहन कण्टक-जटिल
मग चले पग निखिल,
गया है हृदय हिल,
लो थके को वार।
कोई नहीं और,
एक तुम हो ठौर,
दूर सब जन पौर,
भव से करो पार।
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