अतिरिक्त >> आराधना आराधनासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
मानव के तन केतन फहरे
मानव के तन केतन फहरे।
विजय तुम्हारी नभ में लहरे।
छल के बल-सम्बल सब हारें,
तुम पर जन-मन-धन वारें,
असुरों को जी जीकर पारें,
अन्धकार का मानस घहरे।
जो न हुआ वह गुजरे होकर,
जो न गया वह लौटे रोकर,
जो न खुला खोलो तुम धोकर,
टेक तुम्हारी मन में ठहरे।
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