अतिरिक्त >> आराधना आराधनासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
बात न की तो क्या बन आती?
बात न की तो क्या बन आती?
नूपुर की कब रिन-रन आती?
बन्द हुई जब उर की भाषा,
समर-विजय की तब क्या आशा,
बढ़ी नित्यप्रति और निराशा,
बिना डाल कलि क्या तन आती?
बलीवर्द के बिना जुआ है,
मुख न रहा तो असुख, मुआ है,
कलप-कलपकर कलुष हुआ है,
दो नहीं मिले, क्या ठन आती?
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