अतिरिक्त >> आराधना आराधनासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
नहीं रहते प्राणों में प्राण
नहीं रहते प्राणों में प्राण,
फूट पड़ते हैं निर्झर-गान।
कहाँ की चाप, कहाँ की भाप,
कहाँ की ताप, कहाँ की दाप,
कहाँ के जीवन का परिमाप,
नहीं रे ज्ञात कहाँ का ज्ञान।
सरित के बोले खुले अनमोल,
उन्हीं से मुक्ता-जल-कल्लोल,
एक सन्दीपन का हिन्दोल,
एक जीती प्रतिमा बहमान।
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