अतिरिक्त >> आराधना आराधनासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
दुखता रहता है अब जीवन
दुखता रहता है अब जीवन;
पतझड़ का जैसा बन-उपवन।
झर-झरकर जितने पत्र नवल
कर गये रिक्त तनु का तरुदल,
हैं चिह्न शेष केवल सम्बल,
जिनसे लहराया था कानन।
डालियाँ बहुत-सी सूख गयीं,
उनकी न पत्रता हुई नयी,
आधे से ज्यादा घटा विटप
बीज को चला है ज्यों क्षण-क्षण।
यह वायु बसन्ती आयी है
कोयल कुछ क्षण कुछ गायी है,
स्वर में क्या भरी बुढ़ाई है,
दोनों ढलते जाते उन्मन।
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