अतिरिक्त >> आराधना आराधनासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
ओस पड़ी, शरद् आयी
ओस पड़ी, शरद् आयी
हरसिंगार मुसकायी।
बादल वे बदल गये,
कटे-छटे नये-नये,
नभ में आये, उनये,
बन्द हुई पुरवाई।
जुही आन-बान भरी,
चमेली जवान परी,
मालती खिली, निखरी,
शीत हवा सरसायी।
नद के उद्गार घटे,
निकले तट कटे-छटे;
गीले औ’ कीचपटे,
फैली हल-चलवाई।
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