अतिरिक्त >> आराधना आराधनासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
विपदा हरण हार हरि हे करो पार
विपदा हरण हार हरि हे करो पार।
प्रणव से जो कुछ चराचर तुम्हीं सार।
तुम्हीं अविनाशी विहग व्योम के देश,
परिमित अपरिमाण में तुम हुए शेष,
सृष्टि में दृश्य स्वरूप भोजन-वेश
फैलकर सिमटकर तुम्हीं हो निर्धार।
बहुविध तुम्हारा उपाख्यान गाया
फिर भी कहा अन्त अब भी न पाया,
मूर्त हो या स्फूर्त तुम कुछ न आया,
पदों पर दण्डप्रणाम के सम्भार।
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