अतिरिक्त >> आराधना आराधनासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
साँझ के माझ के प्राण-धन धारिए
साँझ के माझ के प्राण-धन धारिए,
पार को सार करके सँवारिए।
अपनी विभूति को राख यदि कर सके,
भाव-विभव तर सके, उत्तम सँवर सके,
जीवन-अरण्य में निर्भय विचर सके,
हर सके शोक, इतरों को उतारिये।
जन विपज्जन्य होकर अगर आपके;
शाप के, पाप के, ताप के, दाप के;
होंगे न वे कभी हृदय की नाप के,
उनसे समझकर उबरिए, उबारिए।
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