अतिरिक्त >> आराधना आराधनासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
|
2 पाठकों को प्रिय 248 पाठक हैं |
जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
छोटा हो तो जी छोटा कर
छोटा हो तो जी छोटा कर,
कट गया समूह बड़ा सत्वर।
आँखों के तिल में दिखा गगन,
वैसे कुल समा रहा है मन,
तू छोटा बन, बस छोटा बन,
गागर में आयेगा सागर।
जब भाप उड़ेगी उस जल की,
उस नभ की सागर है गगरी,
तू चला चले पकड़े डगरी,
यह पारावार कि य’ परावर।
¤ ¤
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book