अतिरिक्त >> आराधना आराधनासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
द्वार पर तुम्हारे
द्वार पर तुम्हारे,
खड़ा हुआ विश्व
कर पसारे।
ऐसी दयनीयता हुई है क्या,
फूली है, भीतरी रुई है क्या,
दुनिया में लड़े तो दुई है क्या,
बिसरा यह नहीं रे बिसारे।
समझौते समझौते चले गये,
सोचा है, तो हम कब छले गये,
उल्टा तो बिगड़े के भले गये,
हार गया परा जो न पारे।
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