अतिरिक्त >> आराधना आराधनासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
हार गया
हार गया,
ज्यों मैं उस पार गया।
जाना था नहीं, वह रहस्य क्या,
वहाँ कहीं अपना भी वश्य क्या,
भोजन को भूमि कहाँ, शस्य क्या?
कोई मुझको यहाँ उबार गया—
मार गया,
हार गया।
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