अतिरिक्त >> आराधना आराधनासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
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जीवन में सत्य, सुंदर को बखानती कविताएँ
कामरूप, हरो काम
कामरूप, हरो काम;
जपूँ नाम, राम, राम।
शवरी, गज, गणिकादिक,
हुए कृष्ट प्रासारिक,
पारिक, मैं सांसारिक,
अभिधा हो वयंग्यदाम।
गणता मेरी न गयी,
आयी फिर ज्योति नयी,
तरी दिव्यता उनई,
तेरी मेरी प्रकाम।
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