ई-पुस्तकें >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
‘‘हाँ।’’
‘‘अच्छी बात है, मैं जाऊँगा।’’
नियत तिथि पर चरणदास, मोहिनी, कस्तूरीलाल, सुभद्रा और यमुना तथा संजीव बम्बई के लिए रवाना हो गये।
जाने से एक दिन पूर्व, समय निकालकर चरणदास शरीफन के पास जा पहुँचा। सुख-समाचार पूछ उसने अपने दिल्ली से बाहर जाने की बात बताई तो वह रो पड़ी। चरणदास ने बताया, ‘‘देखो जान, यह नौकरी का मामला है। गजराजजी को कुछ सन्देह हो गया है, इस कारण मैं यहाँ से टल जाना ही उचित समझता हूँ।’’
‘‘यहाँ के खरचे का क्या इन्तज़ाम होगा?’’
‘‘मैं दो हज़ार रुपये तुमको देकर जाऊँगा। उसका हिसाब तुम आने पर मुझे दे देना। इसमें से तुम अपना जेब-खर्च भी निकाल लेना।’’
चरणदास शरीफन को पाँच सौ रुपये मासिक जेब-खर्च के लिए दिया करता था और घर का सब खर्च वह पृथक् दिया करता था। यह खर्च भी लगभग चार-पाँच सौ हो जाता था।
इन सबको स्टेशन तक छोड़ने के लिए गजराज और लक्ष्मी भी पहुँचे हुए थे। गाड़ी छूटने से पूर्व गजराज ने चरणदास को पृथक् में ले जाकर पूछा, ‘‘शरीफन को कुछ देकर जा रहे हो अथवा वह भूखी ही मरेगी?’’
‘‘दे दिया है।’’
‘‘तब ठीक है।’’ गजराज ने मुस्कराते हुए कहा।
चरणदास निश्चिन्त होकर बम्बई के लिए रवाना हो गया।
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