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दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...

: ७ :

चरणदास के शरीफन से सम्बन्ध की बात सुन गजराज के पाँव तले से मिट्टी निकल गई थी। उसका अपना सम्बन्ध शरीफन से और भी पुराना था।

जिस दिन अमृतसर स्टेशन पर दो सौ रुपये के नोट शरीफन को देकर वह विदा हुआ था, अपने विचार से वह उसी दिन उसको अपने मन से निकाल बैठा था। शीघ्र ही शरीफन का सुन्दर मुख और उसके पति की भयंकर आकृति उसको विस्मृत हो गई थी।

इस घटना के कुछ मास बाद एक दिन उसको उर्दू में एक पत्र मिला। लिफाफे पर उर्दू में पता लिखा देख वह समझ गया कि यह उसी औरत का होगा। उसने उत्सुकता से पत्र खोला और पढ़ा। लिखा था–

‘‘जनाब लालाजी!’’

‘‘हजरत मियाँ मीर मेहरबानी इस तरह हुई थी कि मेरे मुसीबतज़दा शौहर की रूह वहाँ से आने के दो महीने बाद अपने गन्दे गले-सड़े कालिव से छूट गई। खुदा उनका भला करे!

‘‘आपकी इनायत की हुई मदद मुझे यहाँ तक ले आई है। अब आगे कुछ भी सहारा दिखाई नहीं देता, इसलिए मजबूर होकर दाता के आगे हाथ पसार रही हूँ। उम्मीद कामिल है कि आप मायूस नहीं करेंगे।

‘‘यों भी ज़िन्दगी की मुस्तकबिल पर गौर करने पर एक अजीब-सी दिल की हालत हो जाती है। आप-जैसे मेहरबान से उसमें भी मदद की उम्मीद करती हूँ।

‘‘कभी आपको इधर आना हो तो तारीख और मिलने का वक्त लिखें तो खिदमत में हाजिर होकर इसके मुताल्लिक भी कुछ राय करूँ।’’

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