लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> दो भद्र पुरुष

दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

377 पाठक हैं

दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


‘‘तो उसको बोर्डिंग हाउस में प्रविष्ट करा देना।’’

‘‘यही तो मैं विचार कर रही थी कि उसको लक्ष्मी बहिन के बोर्डिंग हाउस में प्रविष्ट करा दूँ।’’

‘‘तो ऐसा करो, तुम कस्तूरी को अपने साथ ले जाओ। वह बम्बई तो जा रहा है। यह विचार तो उसका पहले से ही था। आगे तुम लोग उसे अपने साथ ले जाना।’’

‘‘यह तो बहुत ही अच्छा होगा। संजीव का दिल लगा रहेगा और हमको भी बहुत सहायता मिलेगा।’’

जब कस्तूरी को बताया गया कि उसके मामा का स्वास्थ्य ठीक नहीं है और उसको उनके साथ जाना चाहिए तो वह कहने लगा, ‘‘मेरा एक महीना व्यर्थ में ही नष्ट हो जायगा।’’

‘‘तुम्हारा परीक्षा-परिणाम कब घोषित हुआ था?’’ गजराज ने पूछा।

‘‘जुलाई में।’’

‘‘आजकल कौन-सा मास चल रहा है?’’

‘‘अक्टूबर।’’

‘‘इन तीन महीनों में तो तुमने दिल्ली-दुर्ग विजय कर लिया है न?’’

‘‘डैडी! आप यह चाहते हैं कि मैं उनके साथ जाऊँ?’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book