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दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


मोहिनी की बात सुनकर गजराज गम्भीरतापूर्वक विचार करने लगा। उसे चुप देख मोहिनी ने कहा, ‘‘यह तो उन्होंने बताया है कि काम बहुत अधिक है और छुट्टी मिलनी अति कठिन है। वे आपसे छुट्टी माँगना भी नहीं चाहते। मैंने समझा कि मैं आपको उनकी मानसिक और शारीरिक अवस्था बता दूँ। यदि एक मास किसी स्थान पर आराम कर लेंगे तो मैं समझती हूँ कि वे कम्पनी का काम फिर भलीभाँति कर सकेंगे।’’

गजराज हँस पड़ा। उसने कहा, ‘‘मोहिनी, तुमने झूठ बोलना कब से सीख लिया है?’’

‘‘जब से आपने स्वयं को गुप्त रखकर डाँटना आरम्भ किया है। जीजाजी! मैंने समझा था कि सुमित्रा के पिता किसी झँगड़े में फँस गये हैं और कोई पुलिस-ऑफिसर मुझसे उसके विषय में पूछ रहा है। मैंने तो ‘घर पर ही हूँ’ बताना इसलिए ठीक समझा था कि वह अधिक-से-अधिक सुरक्षित बात है। मुझे क्या पता था कि जीजाजी गुप्तचर विभाग का कार्य भी करने लगे हैं।’’

‘‘यह बात नहीं मोहिनी! वास्तव में ही चरणदास एक बहुत बड़े झगड़े में फँस गया है। बताओ, कब और कहाँ जाना चाहते हो तुम लोग?’’

‘‘यदि आप स्वीकार करें तो हम दोनों सुभद्रा और यमुना को छोड़ने के लिए बम्बई तक जाएँगे और फिर महाबलेश्वरम् अथवा ऊटी चले जायँगे। एक मास तक वहाँ रहकर लौट आयेंगे।’’

‘‘मैं समझता हूँ कि चरणदास जा सकता है, इस शर्त पर कि सुमित्रा और संजीव तुम लोगों के साथ ही जायँगे।’’

‘‘परन्तु सुमित्रा को तो कॉलेज से छुट्टियाँ लेनी पड़ेंगी और इस स्थिति में उसके लैक्चर कम हो जायँगे।’’

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