लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> दो भद्र पुरुष

दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

377 पाठक हैं

दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


‘‘मुझे फोन कर देते। कदाचित् मैं कुछ सहायता कर पाता।’’

‘‘आज सायंकाल आपसे मिलूँगा। मैंने यही उचित समझा कि जब तक मैं जाँच-पड़ताल न कर लूँ, तब तक आपसे कहने की आवश्यकता नहीं। आप किस समय घर मिलेंगे?’’

‘‘मैं इस समय कोठी पर हूँ। आज रात के साढ़े आठ बजे तक यहीं रहूँगा। तदुपरान्त या तो सिनेमा जाऊँगा या क्लब।’’

‘‘मैं यहाँ का कार्य निबटाकर लगभग पाँच बजे तक आऊँगा।’’

‘‘ठीक है। कस्तूरीलाल को कह दो, तुरन्त चला आए। यमुना और सुभद्रा को इंग्लैंड का पैसेज बुक करा दिया है। वे परसों बम्बई के लिए जाने वाली हैं।’’

‘‘तो प्रवेश मिल गया है?’’

‘‘हाँ।’’

‘‘तब तो और भी जल्दी आऊँगा।’’

कस्तूरीलाल गया तो चरणदास गम्भीर विचारों में लीन हो गया। दफ्तर का काम निबटाना तो एक बहाना था। वह उसी समस्या के विषय में विचार कर रहा था, जिसके कारण वह तीन दिन से घर पर भी नहीं जा पाया था।

तीन दिन हुए, शरीफन के लड़का हुआ था। यद्यपि नर्स का बन्दोबस्त हो गया था, फिर भी उसको चिन्ता हो रही थी कि कहीं वह चल न बसे। तीन दिन की चिकित्सा के उपरांत ज्वर तो उतर गया था। बेबी के पालने के ले दाई भी ढूँढ ली गई थी। यह सब प्रबन्ध करने में तीन दिन लग गए थे। आज वह कह आया था कि आज की रात वह नहीं आयेगा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book