ई-पुस्तकें >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
चरणदास के सम्मुख यह एक गम्भीर समस्या उपस्थित थी।
चरणदास गजराज की कोठी में जल्दी ही पहुँच गया। उसने पाँच बजे पहुँचने की बात कही थी, परन्तु अभी चार भी नहीं बजे थे कि वह जा पहुँचा।
कस्तूरी साढ़े तीन बजे ही पहुँच गया था। वह आया तो गजराज ने पूछ लिया, ‘‘वहाँ क्या हो रहा था?’’
‘‘डैडी, सिर दर्द कर रहा था।’’
‘‘दर्द के बच्चे, तुम्हारा सिर दर्द कर रहा था या सुमित्रा का? और तुम्हारी मामी का दिल क्यों धड़क रहा था?’’
इस सबका कस्तूरी क्या उत्तर देता? वह चुपचाप खड़ा रहा। गजराज ने पूछा, ‘‘तुम्हारा परीक्षा-फल निकले आज तीन मास हो चुके हैं। अब तक तुमने निश्चय कर लिया होगा कि भविष्य में तुम्हें क्या करना है?’’
‘‘जी, मैं पी-एच० डी० की तैयारी करना चाहता हूँ।’’
‘‘एम० ए० को द्वितीय श्रेणी में किया है, पी-एच० डी० तुमको कौन देगा?’’
‘‘मैं अपने प्रोफेसर नवलकिशोर से मिला था। वे कहते थे कि यह असम्भव नहीं।’’
‘‘पर मैं पूछता हूँ कि तुम करना क्या चाहते हो? डी० लिट्० भी हो गए तो फिर...?’’
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