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दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


इस बेमेल की बात के विषय में जाँच करने के लिए उसने पुनः कार्यालय में फोन किया। वहाँ से हैड क्लर्क बोल रहा था। उसने बताया, ‘‘सेकेटरी साहब कल साढ़े नौ बजे आये थे और ठीक साढ़े पाँच बजे यहाँ से गये थे। आज वे आये नहीं हैं।’’

गजराज को सन्देह हुआ कि सुमित्रा को पता नहीं होगा कि उसका पिता घर में रहा है। इस कारण उसने एक घण्टे के बाद चरणदास के घर पुनः टेलीफोन किया। गजराज का विचार था कि मोहिनी घर आ गई होगी। टेलीफोन मोहिनी ने ही उठाया। गजराज ने आवाज़ बदलकर पूछा, ‘‘सेक्रेटरी साहब से बात करनी है।’’

मोहिनी ने पहचाना नहीं कि कौन पूछ रहा है। गजराज चरणदास को नाम लेकर बुलाता था। बिना यह पूछे कि कौन पूछ रहा है मोहिनी ने कह दिया, ‘‘वे तीन दिन से दिल्ली से बाहर गये हुए हैं।’’

‘‘सेक्रेटरी साहब का घर कहाँ है?’’

‘‘क्यों, क्या काम है? कौन पूछ रहा है?’’ मोहिनी की आवाज़ में कुछ घबराहट आ गई थी।

‘‘मैं कार्यालय से पूछ रहा हूँ। उनसे एक अत्यावश्यक कार्य है। यदि वे नहीं है तो उनकी मिसेज़ को बुला दीजिये।’’

‘‘मैं बोल रही हूँ। क्या काम है?’’

‘‘आज प्रातःकाल आप कहाँ थीं?’’

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