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दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


‘‘घर पर ही थी।’’

‘‘घर से किस समय गई थीं?’’

‘‘मैं घर से कहीं गई ही नहीं।’’

इस उत्तर पर तो गजराज की हँसी निकलने वाली थी। गजराज यह समझ रहा था कि इस जिरह से मोहिनी घबरा गई है। उसने अपनी हँसी रोककर कहा, ‘‘चीफ डायरेक्टर साहब के लड़के मिस्टर कस्तूरीलाल कहाँ हैं?’’

‘‘क्या काम है? जब तक काम नहीं बताते, उत्तर नहीं मिलेगा।’’

‘‘उनके पिता आये हैं और उनसे तुरन्त बात करना चाहते हैं।’’

‘‘इससे तो मोहिनी घबरा उठी। उसने कहा, ‘‘ठहरिये, मैं उसको बुलाती हूँ।’’

इतना कहकर उसने फोन एक ओर रख दिया और कस्तूरीलाल को बुला लाई।

कस्तूरीलाल फोन पर आया तो गजराज ने कहा, ‘‘आपके पिता यह पूछ रहे हैं कि आप घर कब आयेंगे?’’

कस्तूरीलाल को यह आवाज़ कुछ परिचित-सी लगी। वह अभी विचार ही कर रहा था कि यह पूछने वाला कौन हो सकता है, गजराज ने पुनः पूछ लिया, ‘‘एक घण्टा पूर्व आप कहाँ थे?’’

‘‘क्या बात है? फोन पिताजी को दे दो।’’

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