ई-पुस्तकें >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
|
10 पाठकों को प्रिय 377 पाठक हैं |
दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
‘‘तुम आज कॉलेज नहीं गईं?’’
‘‘फूफाजी, सिर दर्द कर रहा था इसलिए छुट्टी कर ली है।’’
‘‘माँ कहाँ है?’’
‘पड़ोस में मिसेज़ पसरीचा की कोठी में गई हैं।’’
‘‘कस्तूरी रात वहाँ रहा था?’’
‘‘हाँ, वह यहाँ से नौ बजे चला गया था। कह रहा था कि कॉलेज लायब्रेरी जाना है। अपनी पी-एच०डी० के विषय में जानकारी प्राप्त करना चाहता था।’’
‘‘आये तो उसको बताना कि दो-तीन दिन में यमुना और सुभद्रा विलायत के लिए जाने वाली हैं। उसको आज यहाँ आ जाना चाहिए। कदाचित् उन्हें छोड़ने के लिए उसे बम्बई तक जाना पड़ जाय।’’
‘‘सुभद्रा को प्रवेश मिल गया है?’’
‘‘हाँ।’’
‘‘अच्छा, कह दूँगी।’’
परन्तु गजराज को यह जानकर विस्मय हुआ कि चरणदास कई दिन से दौरे पर गया हुआ है और दफ्तर वाले कह रहे हैं कि वह आज घर से ही नहीं आया। इसका अर्थ यह हुआ कि वह कल कार्यालय में उपस्थित था।
|