ई-पुस्तकें >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
‘‘नहीं। परन्तु आप क्यों पूछ रही हैं?’’
‘‘मैंने उस लड़की की आँखों में इश्क की खुमारी देखी है।’’
चरणदास को यह बात भली प्रतीत नहीं हुई। परन्तु एक अपरिचित स्त्री से वह कुछ तलखी से बात करना नहीं चाहता था। उसने बात को हँसी में उड़ाने के लिए कहा, ‘‘बहुत तजरबा है आपको इश्क की खुमारी का?’’
‘‘जी, मुझे अपने खाविन्द की जुदाई को बरदाश्त करते हुए काफी अरसा हो गया है। मैं जब अपने में बेताबी महसूस करती हूँ तो मेरी भी यही हालत हो जाती है, जो मैंने उस लड़की की आँखों में देखी थी।’’
‘‘मुझे तो कुछ वैसी बात दिखाई नहीं दी।’’
‘‘आप किसी औरत की आँखों में तो देखते ही नहीं। आपको दिखाई क्या दे?’’
चरणदास की दृष्टि अनायास ही समीप बैठी शरीफन पर चली गई। वह और भी उसके समीप सटकर बैठ गई। चरणदास ने बात बदलने के लिए पूछ लिया, ‘‘आपकी पॉलिसी के कागज़ सब आपके पास हैं?’’
‘‘जी।’’
‘‘तब तो पहले दफ्तर चलें।’’
‘‘इतनी जल्दी भी क्या है? कल दोपहर की रेल में चढ़ी आज सुबह यहाँ पहुँची थी और मिसेज़ खन्ना ने न जाने क्या समझा कि मुझे गुसल वगैरह के लिए नहीं पूछा। अगर आपकी बीवी को कुछ ऐतराज नहीं तो चलिये गुसल कर लूँ, कुछ खा-पी लूँ। बाद में वह काम भी कर लेंगे।’’
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