ई-पुस्तकें >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
|
10 पाठकों को प्रिय 377 पाठक हैं |
दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
चरणदास परेशानी अनुभव कर रहा था। उसे चुप देख शरीफन ने कहा, ‘‘क्यों, अपने दिल पर काबू नहीं रहा न?’’
‘‘क्या मतलब?’’
‘‘कुछ नहीं। आप अपने घर ले चलने से घबरा रहे हैं न? एक शरीफ औरत को किसी सड़े-गले होटल में रख आइएगा और न जाने कोई दलाल पीछे लग गया तो ज़िन्दगी बरबाद हो जायगी।’’
‘‘पर क्या आप शरीफ हैं?’’
‘‘मेरा तो नाम भी शरीफन है।’’
‘‘और काम?’’
‘‘कोई मेरी तरफ आँख उठाकर तो देखे। आप इतमीनान रखिये। मैं आपकी बदनामी का बायस नहीं बनूँगी।’’
चरणदास ने अपनी मोटर पृथ्वीराज रोड की ओर घुमा ली। वहाँ पहुँचते ही माली ने बताया, ‘‘बबुआइन मिस्टर खन्ना के घर गई हैं।’’
‘‘रसोइये को कहो कि मेहमान आये हैं। उनके लिए खाना तैयार कर दें।’’
इतना कह चरणदास ने मेहमानों का कमरा खोल दिया और शरीफन को गुसलखाना दिखा दिया। शरीफन ने चरणदास की ओर देखा तो वह उसकी नज़र से घबरा उठा। शरीफन ने चरणदास का हाथ पकड़कर कहा ‘‘फिजूल में तकल्लुफ कर रहे हैं। इसी कमरे में तशरीफ रखिये। मैं अभी तैयार हो जाती हूँ।’’
|