लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> दो भद्र पुरुष

दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

377 पाठक हैं

दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


‘‘मेरा मकान तो यहाँ से दूर है। आपका सामान कहाँ है?’’

शरीफन ने समीप रखे अटैचीकेस की ओर संकेत कर दिया।

‘‘तो चलिए।’’ चरणदास ने कहा।

शरीफन ने चरणदास के मुख पर देखा और फिर कुछ विचारकर उठ खड़ी हुई। उसने अपना अटैचीकेस उठाया और चरणदास के साथ चल पड़ी।

कोठी के लॉन में कस्तूरीलाल और सुमित्रा खड़े कुछ बातचीत कर रहे थे। चरणदास ने सड़क पर जाते-जाते खड़े हो कस्तूरीलाल को आवाज़ देकर बुला लिया। वह आया तो उसने पूछा, ‘‘आज उधर आ रहे हो अथवा नहीं?’’

‘‘जी नहीं। आज हम कैपिटल में ‘ब्राडले’ पिक्चर देखने के लिए जा रहे हैं। फिर यहाँ खाना खायेंगे। सुमित्रा मामीजी से पूछ आई है, रात को यहीं रहेगी।’’

चरणदास इस उत्तर से असन्तुष्ट-सा शरीफन के साथ कोठी से बाहर चला गया। कोठी के बाहर उसकी ‘फियेट’ कार खड़ी थी। वह स्वयं ही गाड़ी चला रहा था। जब वह गाड़ी में बैठा तो शरीफन उसके साथ आली सीट पर बैठ गई।

गाड़ी स्टार्ट हुई तो शरीफन से पूछा, ‘‘क्या यह लड़का उस लड़की का खाविन्द है?’’

‘‘नहीं, भाई है।’’

‘‘सगा?’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book