लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> दो भद्र पुरुष

दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

377 पाठक हैं

दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


‘‘मगर इसके लिए तो आपको कम्पनी के दफ्तर में आना चाहिए था।’’

‘‘वहाँ तो जाऊँगी ही, यहाँ तो मैं रहने के इन्तजाम के लिए आई हूँ। दिल्ली में बीमा मुतल्लिक बातचीत में न जाने कितने दिन लग जायँ। यहाँ रहने का कोई बन्दोबस्त नहीं है। मेरे पास इतने पैसे भी नहीं कि मैं होटल का खर्च दे सकूँ। मिस्टर खन्ना से पुरानी वाकफियत है, इस कारण यहाँ चली आई हूँ।’’

‘‘कम्पनी का काम तो मैं अभी एक घण्टे में निपटा देता हूँ। मिस्टर खन्ना तो एक सप्ताह तक आने वाले हैं।’’

‘‘मुझे तो उनसे भी मिलना था।’’

‘‘उसका भी प्रबन्ध हो जाएगा। आप मेरे साथ आइए।’’

‘‘तो इस कोठी से चलूँ।’’

‘‘हाँ, बीमा कम्पनी के ग्राहकों को हम कोठी में नहीं रखते। कम्पनी के दूसरे डायरेक्टर्स आपत्ति करते हैं।’’

‘‘मगर मेरे तो खन्ना साहब से दोस्ताना ताल्लुकात हैं।’’

लक्ष्मी इस औरत के हठ को देख पेंचोताव खा रही थी परन्तु वह चरणदास की बातों में हस्तक्षेप करना नहीं चाहती थी। चरणदास ने कुछ रुखाई से कह दिया, ‘‘वे घर पर हैं नहीं। तब तक के लिए मैं आपको ठहरने का इन्तज़ाम कर देता हूँ। जब वे आ जायँगे तो आप उनसे मिल लीजिएगा।’’

‘‘आप कहाँ रहते हैं?’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai