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दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


‘‘मास्टरजी तो यही कहते थे।’’

‘‘तुम अपने मास्टरजी से पूछना कि कभी मुसलमान यहाँ पर राज्य करते थे अथवा नहीं? जब वे राज्य करते थे उस समय वे सभी हिन्दुओं को चबा क्यों नहीं गये?’’

‘‘एक लड़के ने पूछा था, तब मास्टरजी ने कहा था, ‘अब तो वे हिन्दुओं को जीवित नहीं रहने देंगे। इसीलिए अंग्रेज़ों के राज्य की आवश्यकता। अंग्रेज़ी राज्य में न्याय होता है।’ ’’

‘‘कस्तूरी! मास्टर साहब से पूछना चाहिए कि जब मुसलमान बादशाह थे तब उन्होंने हिन्दुओं को समाप्त नहीं किया, अब किस प्रकार ऐसा कर लेंगे?’’

कस्तूरी चुप रहा। चरणदास ने ही कहा, ‘‘मुसलमान हिन्दुओं को समाप्त नहीं कर सके और अब भी वे ऐसा नहीं कर सकेंगे। जहाँ-जहाँ भी मुसलमान झगड़ा करते हैं वहाँ अंग्रेज़ उनकी सहायता करते हैं। इस अवस्था में हिन्दू दो का सामना नहीं सकते।’’

‘‘परन्तु अंग्रेज़ मुसलमानों की सहायता क्यों करते हैं और हिन्दुओं की क्यों नहीं करते?’’

‘‘इसलिए कि तुम्हारा मास्टर और दूसरे अंग्रेज़ झूठ बोलते हैं कि हिन्दुस्तानी परस्पर लड़ते हैं, मूर्ख हैं, अनपढ़ हैं और इसी प्रकार की अन्य बुराइयाँ करते हैं। हिन्दू अंग्रेज़ों की इस चाल को समझ गए हैं। इस कारण हिन्दू न तो अंग्रेज़ों का राज्य पसन्द करते हैं और न ही उनकी इन बातों को पसन्द करते हैं कि वे न्यायकर्ता हैं। उनकी बात का भाण्डा फोड़ने वाले तो हिन्दू हैं। इस कारण अंग्रेज़ हिन्दुओं के विरुद्ध हैं।’’

इस प्रकार कस्तूरी और यमुना की शिक्षा चलने लगी।

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