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दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...

: ४ :

गजराज खन्ना की कोठी दो-मंज़िली थी। कोठी के आगे-पीछे घास के बहुत बड़े-बड़े मैदान थे। कोठी के खुले बरामदे, ऊँची छतें, संगमरमर के फर्श, चौड़ी-चौड़ी खिड़कियाँ और दरवाज़े थे। कोठी में चौदह कमरे थे। पाँच पृथक् स्नानागार और शयनकक्ष थे। एक बहुत बड़ा गोल कमरा, बैठक के रूप में प्रयोग करने के लिए, और अच्छा-खासा, जिसमें तीस आदमी बैठ सकें, खाना खाने का कमरा था। कोठी में ही एक कमरा कार्यालय के लिए था, जिसमें गजराज का मुंशी बैठता था और ठेकेदारी के अन्य कार्य भी वहीं पर होते थे।

गजराज दिल्ली में सन् १९१९ में आया था और उसने कोठी के लिए यह स्थान सरकार से लेकर १९२॰ में कोठी तैयार कर ली थी। तब से वह इसी में रहता था।

जब वह कोठी में रहने के लिए आया था, तो उस समय लक्ष्मी ने पूछा, ‘‘यह तो बहुत बड़ी कोठी है। कौन-कौन रहेगा इस में?’’

‘‘अभी तो मिस्टर तथा मिसेज़ खन्ना और उनके दो बच्चे रहेंगे। नौकरों के लिए कोठी के पिछवाड़े के कमरे बनवा रहा हूँ।’’

‘‘इतनी बड़ी कोठी में अकेले रहते हुए तो भय-सा लगेगा।’’

‘‘किस बात का भय?’’

‘‘कोई चोर-डाकू रात को गला न घोंट जाय।’’

‘‘तो ऐसा करो, चोर-डाकुओं के लिए यहाँ कुछ छोड़ो ही नहीं। सब कुछ बैंक में जमा कर दो।’’

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