ई-पुस्तकें >> दो भद्र पुरुष दो भद्र पुरुषगुरुदत्त
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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...
‘‘जो कुछ उस समय उनके पास था, यहाँ तक कि माँ के पास हाथ में पहनने के लिए चूड़ियाँ भी नहीं रही थीं। विवाह के अवसर पर पहनने के लिए माँ ‘डिब्बी बाज़ार’ से दस आने में पीतल के कड़े लाई थी और तब मेरा कन्यादान किया था।’’
‘‘उन्होंने ऐसा क्यों किया था?’’
‘‘इसलिए कि तुम्हारे बाबा, जो बहुत धनी आदमी थे, मुझसे रुष्ट न हों और तुम्हारे पिताजी के बरातियों का उचित मान-सत्कार हो सके।’’
‘‘बाबा प्रसन्न हो गये थे?’’
‘‘वे देवता-स्वरूप थे। उनकी तो कुछ भी पाने की इच्छा नहीं थी। जब मेरे पिताजी ने इतना कुछ दिया और उनको पता चला कि सब-कुछ बिक गया है तो इससे उनको भारी दुःख हुआ था, परन्तु इस विषय में वे अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं करना चाहते थे।
‘‘हाँ, उन्होंने अपने मरने के समय तुम्हारे पिता से कहा था कि लाला सोमनाथ ने हमको एक देवी दे दी है, इस कारण हमारा परिवार उनका आभारी है।’’
इस गहन बात को कस्तूरी कितना समझ पाया होगा यह कहना कठिन है। फिर भी कस्तूरी के मन में सुमित्रा, सुभद्रा और उनके माता-पिता के लिए आदर में वृद्धि अवश्य हुई थी।
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