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दो भद्र पुरुष

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7642
आईएसबीएन :9781613010624

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दो भद्र पुरुषों के जीवन पर आधारित उपन्यास...


‘‘यह मेरे प्रश्न का उत्तर है? मेरे अभी तक कोई सन्तान नहीं हुई। हम ‘प्रोफिलैक्टिक्स’ प्रयोग करते हैं। यह उनके कहने पर ही किया जा रहा है।’’

‘‘तब ठीक है। मैं समझता हूँ कि हम दोनों के साथ ठीक ही हुआ है। मैं अपने-आपसे सन्तुष्ट हूँ।’’

‘‘मुझको यह जानकर बहुत प्रसन्नता हुई है।’’

‘‘अब मैं तुमको अपनी बहन मान निमन्त्रण देने के लिए आया हूँ। मैं अपने पहले व्यवहार पर पश्चात्ताप कर रहा हूँ।’’

जब वह मामी को निमन्त्रण देने के लिए गया तो उसको मामा तथा मामी के वैमनस्य का पता चला। मामी ने बताया, ‘‘एक दिन वे एक मुसलमान औरत को यहाँ रखने के लिए आए। मैं उनका ही छाता ले, उनको पीटने को तैयार हो गई और उनको कोठी से निकालकर ही दम लिया। सुमित्रा का तब विवाह नहीं हुआ था। मैं उसके सम्मुख उसके पिता का दुराचार उदाहरण बनने देना नहीं चाहती थी। जब से वे यहाँ से गये, फिर नहीं आये। सुमित्रा के विवाह पर मैंने उनको बुलाने का यत्न किया था। उन्होंने आना स्वीकार नहीं किया।’’

कस्तूरीलाल चरणदास को भी निमन्त्रण देने गया तो उसने कह दिया, ‘‘मैं तो तभी आ सकता हूँ, जब तुम शरीफन को भी निमन्त्रण दो। मैं सुमित्रा के विवाह पर भी इसी कारण नहीं गया। मोहिनी ने कह दिया था कि वह शरीफन को तब निमन्त्रण दे सकती है जब उसका भी सम्बन्ध किसी शरीफजादे से हो। वह है नहीं। इस कारण शरीफन के लिए उसके घर में कोई स्थान नहीं।’’

कस्तूरीलाल ने उसी समय एक पृथक् निमन्त्रण ‘मुसम्मात शरीफन’ के नाम से लिखकर चरणदास को देते हुए कहा, ‘‘मामाजी, जिसका आप मान करते हैं, मेरे लिए भी वह माननीय है।’’

इस प्रकार दो भद्र पुरुषों का मिलन कस्तूरीलाल के पुत्र के नामकरण-संस्कार के समय हुआ, परन्तु यह मिलन भी प्रभावहीन ही रहा।

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